शुक्रवार, 9 अक्तूबर 2020

संवेदनाओं पर तुम्हारा ही अधिकार क्यों ?

 हे मनुष्य !
माना की हम पशु हैं,
परंतु है तो प्राणी ।
प्राण हम में भी बस्ते हैं।
सुख-दुख ,हर्ष -विषाद ,
पीड़ा -आनंद आदि हमारे
जीवन के भी अंग हैं।
भाग्य – दुर्भाग्य हमारे भी
जीवन के साथ ही जुड़ा है।
मान-अपमान को हम भी
महसूस करते हैं।
हम में भी होती है, ममता,प्रेम ,करुणा ,
दया , सहयोग ,जितनी की तुममें ।
अपितु तुम से अधिक ।
तुमने तो यह  सभी अमूल्य निधि खो दी है,
जो तुम्हें मानव बनती थी।
मगर तुम तो हम से भी नीचे गिर गए।
तुमने जो निधि खोयी ,
हमने अब तक सँजो के रखी हुई है,
पशु होकर भी।
हम तो पशु होकर भी कभी पशुता पर नहीं उतरे ।
और तुम मानव होकर मानवता ही भूल गए।
तब भी तुम्हारा इन संवेदनाओं पर अधिकार है  क्यों ?
मात्र इसीलिए ! की तुम सर्वाधिक शक्तिशाली ,बुद्धिशाली
विकसित प्राणी ,इस धरती पर ।
और हम तुमसे निम्न बुद्धि ,निर्बल, मुक ,
अविकसित प्राणी इस धरती पर।
मगर न्यून सही बुद्धि तो है हमारे पास,
तुम्हारे जितना विशाल न सही ,
ह्रदय भी है हमारे पास ।
फिर संवेदनाओं पर केवल तुम्हारा ही एकाधिकार कैसे ?
हमारा समाज भले ही तुम्हारे समाज जैसा विस्तृत और विकसित न हो ,
मगर हमारे समाज में भी एक परिवार होता है,
माँ -पिता ,भाई-बंधु ,सभी होते हैं तुम्हारी तरह ।
मगर तुम्हारे रिश्ते स्वार्थ से बंधे होते हैं, हमारे नहीं।
एक इंसानी माँ की भावनाओं ,और एक पशु माँ की भावनाओं में,
क्या अंतर होता है?
एक इंसानी शिशु , बच्चों की बालसुलभ चंचलता ,हठ में कोई
अंतर होता है क्या ?
वास्तव में हम में  और तुम में कोई अंतर नहीं।
रुधिर तुम्हारे तरह हमारे रगों में भी बहता है।
नयन हमारे भी अश्रु बहाना जानते है।
बेजुबान ही सही ,भावनाओं की भाषा तुमसे अधिक समझते हैं।
चोट ,घाव ,जलन , तपन ,हम भी महसूस करते हैं।
स्नेह का स्पर्श भी महसूस करते हैं।
मगर अफसोस ! तुम्हारे छ्ल ,प्रपंच को हम नहीं समझते ।
यह मानवीय गुण हम में नहीं है।
बस इसी गुण से हम तुमसे पिछड़ गए।
अगर यह गुण हमारे में भी होते तो हम कभी तुमसे न हारते ,
और ना ही धोखा खाते ।
मगर फिर भी हम यही कहते हैं,
हम  तुमसे बेहतर है।
जिन मानवीय उत्तम गुणो की अमूल्य निधि को उम भूल चुके हो ,
जिन संवेदनाओं को भूलकर तुम संवेदनहीन बन गए हो ,
हम अब भी है संवेदन शील तुमसे अधिक ,
तो तुम्हारा संवेदनाओं पर एकधिकार क्यों ?

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