ईश्वर की खोज (कविता)
मैं तो नहीं हूँ मंदिर -मस्जिद ,
ना गिरजाघर न गुरुद्वारे में .
क्योंकि भक्ति नहीं यहाँ व्यापार होता है ..
मैं तो नहीं हूँ धार्मिक गुरु, मुल्ला ,
पादरी ,ज्ञानी ,और पंडितों के स्थानमें.
धर्म का नहीं यहाँ व्यभिचार का प्रचार होता है.
मैं तो नहीं हूँ इंसानों में ,
बच्चे ,बूढ़े या युवा ,किशोर ,
सभी के भीतर पाप /कुटिलता का अन्धकार है ...
हाँ ! मैं कभी था सारी प्रकृति में,
इस पृथ्वी के कण-कण में,जड़-चेतन में.
मगर प्रदुषण से अब सारा सरोबर है. ....
मैं हूँ तो धर्म -ग्रंथों में,
कुरान ,बाईबल , गीता में,
वेदों , पुराणों ,शास्त्रों में ,
मगर इन्हें पढने /समझने की किसको दरकार है?
वैसे तो मैं बिकता हूँ दुकानों में,
तस्वीर या मुर्तिओं के रूप में.
उत्सवों में मुझे घर लाया जाता है बड़ी ख़ुशी से ,
और उसके बाद मेरा स्थान ह्रदय नहीं ,नदी- नाले और सागर है..
जब सुख / ऐश्वर्य होता है मनुष्य के जीवन में ,
तब भूल जाता है मुझे वोह ऐसे समय में .
मगर जब आये कोई बुरी घड़ी ,
तो मुझ पर आक्षेप क्यों ?
तुम मुझे ढूढ़ते हो दर-बदर ,
केवल अपने स्वार्थ के लिए.
मगर मुझे ढूढा नहीं अपने अंतर्मन में.
मैं तो हूँ अब भी वही ,सदा के लिए .
मैं तो रहता हूँ वास्तव में ,
तुम्हारी सच्ची श्रद्धा ,आस्था और भक्ति में .
एक बार झाको तो सही अपनी आत्मा /अंतर्मन में ,मेरा वहीँ पर घर है .