यह काम वालियां ( मेहरी)
आप आये बहार आई .........( व्यंग्य कविता)
जब ना आये वोह काम पर ,
तो हम पर आ जाती आफत ,
मगर जब आ जाये वोह ,
तो चेहरे की बढ़ जाती है रौनक .
वोह समझती है की मैडम का ,
हाल बहुत अच्छा है .
उसे क्या पता की उसके ,
आने से पहले हमने उसे कितना कोसा है..
'' अभी तक नहीं आई ,
कहीं फिर छुट्टी ना कर ले .
कहीं कोई गुज़र गया ,
या कोई बीमार न पड़ जाए।
हे भगवान ! कहीं वह खुद ,
बीमार ना पड़ जाए।
बीमार ना पड़ जाए।
या यूँ ही ! कहीं नया कोई
छुट्टी का बहाना ना बना ले. ''
उसका क्या है ! उसके पास ,
तैयार रहती है कोई न कोई कहानी।
आज पति से हो गयी लड़ाई ,
या सास से हो गयी बद -ज़बानी।
सूजा हुआ सा मुंह ,
और आँखों में आंसू लिए।
और कभी यूँ ही उदासी की ,
चादर सर पर ओढ़े हुए।
दिखाते हुए लाचारी।
उसे देख कर हमारी मानवता ,
कह उठती है ''बेचारी ''.
पहले तो मुंह से निकलती है , हाय !
फिर उसे परोसी जाती है चाय ,
पहले जिसे करना चाहते थे काम से बाहर ,
अब वह बन जाए सहारा।
निचोड़ लेती है हमारी सभी सहानुभूतियां ,
जिससे करना चाहते थे किनारा।
सच मानो तो यह हमसे ज़ायदा ,
होती है सामाजित प्राणी।
हर दिल को वश करने माहिर ,
और चलती -फिरती आकाशवाणी।
है तो वो अंगूठा -छाप , मगर
उसके सामान्य -ज्ञान की मत पुछिये.
किस गली ,शहर ,या देश में क्या हुआ ,
जो चाहे पूछ लीजिए.
इसके आने से घर की ,
कायापलट हो जाये।
जो काम लगते थे भारी ,
वह एक क्षणमें निपट जाये.
वह ना आये तो एक मेहमान भी ,
मुसीबत लगता है।
और यदि वह आ जाए काम पर तो ,
चाहे कोई भी आये ,कोई फर्क नहीं पड़ता है.
वह चाहे जैसी भी हो ,
हमारे मन को भाये।
हम पर चाहे जो गुज़रे ,
मगर उसपर कोई आंच ना आये ,
यही दुआ करता है हमेशा दिल.
देख कर जिसे कह उठता
आप आईं ,बहार आई.
जो चाहे पूछ लीजिए.
इसके आने से घर की ,
कायापलट हो जाये।
जो काम लगते थे भारी ,
वह एक क्षणमें निपट जाये.
वह ना आये तो एक मेहमान भी ,
मुसीबत लगता है।
और यदि वह आ जाए काम पर तो ,
चाहे कोई भी आये ,कोई फर्क नहीं पड़ता है.
वह चाहे जैसी भी हो ,
हमारे मन को भाये।
हम पर चाहे जो गुज़रे ,
मगर उसपर कोई आंच ना आये ,
यही दुआ करता है हमेशा दिल.
देख कर जिसे कह उठता
आप आईं ,बहार आई.