मर्यादा ( कविता )
आज की आधुनिक बालाओ ने ,
जबसे सर से चूनर हटा दिया .
समाज ने मर्यादा का भी तब से ,
नामो -निशान इसका मिटा दिया .
पाश्चात्य रंग में रंगी यह तितलियाँ .
पहनती हैं आधे -अधूरे लिबास .
अपनी संस्कृति /सभ्यता की अवहेलना करें ,
कहाँ रह गयी इनमें शर्म और लिहाज़ .
न नमस्कार ,ना प्रणाम न आदाब ,
इन्हें लगता है चरण-वंदना भी आजाब .
अंग्रेजी के hai , helloऔर bye कहती है ,
अभिवादन का यही दस्तूर है इनका जनाब .
कहती है यह खुद को आधुनिक नारी ,
शिक्षित ,स्वतंत्र और प्रगति शील .
मगर अधिकारों के साथ कर्तव्यों को न समझे ,ऐसी है स्वार्थी और दम्भी यह बुध्धिशील .
क्या इसे कहते हैं आधुनिकता ?
के संस्कार और शिक्षा में कोई सामजस्य नहीं.
जुड़ना तो चाहती है देश के विकास के साथ,
मगर उसकी सभ्यता /संस्कृति के प्रति आदर नहीं.
इतिहास गवाह है की भारतीय महान नारियों ने ,
सदा अपनी शालीनता और सादगी से सम्मान पाया,
समाज की मर्यादाओं का ध्यान में रखकर भी ,
खुद को देश की विकास की मुख्य-धारा में शामिल किया.
लज्जा है नारी का आभूषण और स्वाभिमान है घूँघट ,
आत्म-विश्वास और आत्म-सम्मान है उसका अस्त्र .
अपनी देवीय शक्ति को पहचानो हे नारायणी !
अपनी आत्म-शक्ति को बनाओ तुम शस्त्र .
याद रखो हे आधुनिक बालाओ !
तुम्हीं ने समाज में मर्यादा रखनी है.
घूँघट ना सही ,कोई पर्दा भी ना सही मगर ,
आँखों में ,आचरण में तो शर्म रखनी है.
तुम रहोगी मर्यादा में तभी तो ,
पुरुषों को भी मर्यादा में रहना सीखा पाओगी .
खुद के साथ-साथ अपनी जाति को भी ,
समाज में उच्च स्थान दिलवा पाओगी .