हां ! मैं भारत हूं,
अत्यंतदुखी और व्यथित ।
वैसे मैं दुखी कब नहीं था ?जब से मेरा जन्म हुआ ,
तब से मैं दुखी ही तो रहा हूं ।
किसी न किसी विदेशी शासक ने मुझ पर ,
सदैव अधिकार जमाया ।
मेरे पीठ पीछे कई जयचंद थे ,
छुरा घोंपने वाले ,
जिनकी वजह से ऐसा अतिक्रमण हो पाया ।
फिर मैं दुखी हुआ अपनी ही संतान से ,
जिसने मेरे तीन टुकड़े कर दिए,
स्वार्थवश ,सत्ता के लालच में।
किसी ने यह जानने का क्या ,
प्रयास किया की कितनी पीड़ा ,
हुई होगी मुझे ।
कितना चित्कार कर रहा होगा ,
मेरा मन ।
मेरे तन से बहता लहू ,
चाहे हिंदू हो या मुस्लिम ,
थी तो मेरी दोनो संताने ही न !
मगर मेरी किसी संतान ने मेरे दर्द को,
नहीं पढ़ा ।
ना ही यह जानने की कोशिश की ,
मेरे मन में क्या है ?
कभी किसी को यह ख्याल नहीं आया ,
की मैं क्या चाहता हूं ?
और अब इस महामारी की वजह से ,
मैं दुखी ,व्यथित ही नहीं ,
भयभीत भी हूं ।
अब तक कितनी प्राकृतिक आपदाएं ,
महामारियों की मार को मैने झेला ।
और अपनी लाखो / करोड़ों संतानों को ,
बेघर ,बरबाद और यतीम होते ,
मैं भारी मन से देखता रहा ।
मगर इस करोना से मैं बहुत परेशान ,
हो गया हूं ।क्या कोई निजात दिलवाएगा,
मुझे इससे ?
मुझे सब तरफ से सुरक्षित करने पर भी ,
यह विदेशी महामारी कहां से आ गई ?
जिसने मौत का तांडव मचा रखा है ।
मैं कब तक ! आखिर कब तक अपनी ,
संतानों को अपनी आंखों के सामने मरता देखूं ?
क्या यह मेरी नियति बन गई है ।
और मेरी संतानों का दुर्भाग्य ।
माना की जन्म मरण ईश्वर के हाथ में है ।
जिस दीए में जितना तेल होगा ,
वो उतना ही जलेगा ।
मगर प्रशासन क्या कर रहा है ?
इस कठोर सत्य की आड़ में,
इनका कर्तव्य कहां गया ?
यह इतने किंकर्तव्यविमुड़ ,
अकर्मण्य कैसे हो सकते हैं?
कोई मुझे बता दे जरा और कितनी लाशों का ,
मेरी गंगा को बोझ उठाना पड़ेगा ।
मुझे अपनी बेसहारा, विधवा ,अनाथों
का रुदन , चित्कार सुनना पड़ेगा ?
आखिर यह तबाही का हाहाकार कब बंद होगा ?
कोई मुझे बता दे आखिर कब मेरे और
मेरी संतानों के जीवन में सुख ,शांति और खुशहाली
आयेगी ?
आखिर कब ?