सोमवार, 17 मई 2021

भारत के मन की पीड़ा

 



हां ! मैं भारत हूं,

अत्यंतदुखी और व्यथित ।

वैसे मैं दुखी कब नहीं था ?
जब से मेरा जन्म हुआ ,
तब से मैं दुखी ही तो रहा हूं ।
किसी न किसी विदेशी शासक ने मुझ पर ,
सदैव अधिकार जमाया ।
मेरे पीठ पीछे कई जयचंद थे ,
छुरा घोंपने वाले ,
जिनकी वजह से ऐसा अतिक्रमण हो पाया ।
फिर मैं दुखी हुआ अपनी ही संतान से ,
जिसने मेरे तीन टुकड़े कर दिए,
स्वार्थवश ,सत्ता के लालच में।
किसी ने यह जानने का क्या ,
प्रयास किया की कितनी पीड़ा ,
हुई होगी मुझे ।
कितना चित्कार कर रहा होगा ,
मेरा मन ।
मेरे तन से बहता लहू ,
चाहे हिंदू हो या मुस्लिम ,
थी तो मेरी दोनो संताने ही न !
मगर मेरी किसी संतान ने मेरे दर्द को,
नहीं पढ़ा ।
ना ही यह जानने की कोशिश की ,
मेरे मन में क्या है ?
कभी किसी को यह ख्याल नहीं आया ,
की मैं क्या चाहता हूं ?
और अब इस महामारी की वजह से ,
मैं दुखी ,व्यथित ही नहीं ,
भयभीत भी हूं ।
अब तक कितनी प्राकृतिक आपदाएं ,
महामारियों की मार को मैने झेला ।
और अपनी लाखो / करोड़ों संतानों को ,
बेघर ,बरबाद और यतीम होते ,
मैं भारी मन से देखता रहा ।
मगर इस करोना से मैं बहुत परेशान ,
हो गया हूं ।क्या कोई निजात दिलवाएगा,
मुझे इससे ?
मुझे सब तरफ से सुरक्षित करने पर भी ,
यह विदेशी महामारी कहां से आ गई ?
जिसने मौत का तांडव मचा रखा है ।
मैं कब तक ! आखिर कब तक अपनी ,
संतानों को अपनी आंखों के सामने मरता देखूं ?
क्या यह मेरी नियति बन गई है ।
और मेरी संतानों का दुर्भाग्य ।
माना की जन्म मरण ईश्वर के हाथ में है ।
जिस दीए में जितना तेल होगा ,
वो उतना ही जलेगा ।
मगर प्रशासन क्या कर रहा है ?
इस कठोर सत्य की आड़ में,
इनका कर्तव्य कहां गया ?
यह इतने किंकर्तव्यविमुड़ ,
अकर्मण्य कैसे हो सकते हैं?
कोई मुझे बता दे जरा और कितनी लाशों का ,
मेरी गंगा को बोझ उठाना पड़ेगा ।
मेरे श्रृंगार मेरी प्रकृति और पर्यावरण को ,
वैसे ही कुछ नलायकों ने बरबाद कर रखा है ,
है यह करोना निसंदेह इनकी दुष्टता का परिणाम ।
और उनकी यह दुष्टता अभी भी जारी है ।
मुझे अपनी बेसहारा, विधवा ,अनाथों
का रुदन , चित्कार सुनना पड़ेगा ?
अब इन दुष्ट ,लालची , स्वार्थी लोगों के कुकृत्य ,
का फल यह बेकसूर लोग क्यों भुक्ते ?
इस बिगड़े हुए हालात के दोषी कुछ 
दुष्ट लोग है ।इसमें इनका क्या कसूर ?
मुझे कोई  तो बताए ,
आखिर यह तबाही का हाहाकार कब बंद होगा ?
कोई मुझे बता दे आखिर कब मेरे और
मेरी संतानों के जीवन में सुख ,शांति और खुशहाली
आयेगी ?
आखिर कब ?






वो दिन कब आयेगा ?

 



कभी एकांत में बैठकर,

सोचता है  हमारा डील।

जब जब समाचारों में,
तबाही को देखता है दिल ।

कब यह करोना जायेगा ,
हमारे देश के भीतर से ।
कब पुनः खड़ा होगा पूरे ,
आत्मविश्वास ,वीरता से ।

कब खत्म होगा मौत का ,
दारुण दृश्यों का सिलसिला।
कब लोग बेखौफ हो जिएंगे ,
शुरू होगा खुशियों का मेला ।

कब विद्यार्थी पढ़ने जायेंगे,
अपने स्कूल/कालेज में रोजाना।
कब लोग दफ्तर जायेंगेऔरहोगा ,
व्यापारियों का दुकानों पर जाना ।


कब बच्चे बाग बगीचों में बेखौफ ,
खुल कर खेलने जा सकेंगे ।
कब बड़े बुजुर्ग ,युवा लोग सैर को,
अपने संगी साथियों के साथ जायेंगे

कब रौनक लौटेगी बाजारों की ,
सिनेमाघरों और रेस्तरां की ।
कब भीड़ होगी गोल गप्पे वाले,
के पास महिलाओं/ युवतियों की ।

सड़कों पर पसरा सन्नाटा बदलेगा ,
कब वाहनों की आवाजाही में ।
और लोग परिवार संग जा सकेंगे ,
सुदूर किसी रमणिक स्थानों में ।

कब मंदिरों के कपाट खुलेंगे,
और बजेंगे घंटे घड़ियाल वहां ।
कब मस्जिदों में होगी अजान,
और लोग अता करेंगे नमाज वहां ।

कब लोग त्योहार मनायेंगे,
परस्पर मिल जुलकर ।
अपने यारों / रिश्तेदारों से ,
हर सुख आनंद बांटेगे मिलकर।

आखिर कब !! कब आयेंगे ,
वो सुहाने दिन पुनः लौटकर ।
हे ईश्वर इस राक्षस को हमारे ,
जीवन और देश से दफा कर ।











रविवार, 9 मई 2021

यह कैसे आंदोलनकारी ?

 

 




यह कैसे है आंदोलनकारी ?

तो हैं बलात्कारी ।

एक मासूम समाज सेवी लड़की का जीवन

और सम्मान इन्होंने छीन लिया ।

यह कैसे है आंदोलनकारी ?,
यह तो है अत्याचारी ।
गुंडागर्दी कर बेवजह बेकसूरों का अंगभंग
और हत्याएं करते है।

यह कैसे हैं आंदोलनकारी ?
यह है गुंडे व्याभ्याचारी।
अनैतिकता ,व्याभिचार और गुंडागर्दी
फैलाकर समाज को दूषित करते हैं ।

यह कैसे हैं आंदोलनकारी ?
यह है देशद्रोही ।
अपनी नाजायज मांगे पूरी करवाने हेतु ,
देश और कानून पर दबाव डालते हैं ।

यह कैसे हैं आंदोलनकारी ? ,
यह है आतंकवादी ।
मांगे पूरी न होता हो रास्ता रोककर ,
राष्ट्रीय संपत्ति को नुकसान पहुंचाकर,
देश में दहशत फैलाते हैं।

किसान मजदूर नहीं है ,
यह हैं राजनीतिक गुंडे ।
जैसे भेड़ की खाल में खूंखार भेड़िए ,
जो भोले भाले लोगों को कपट जाल
में फंसाकर उनका शोषण करते हैं।

हमारे देश के मेहनत कश किसान मजदूर !
उनको कहां इतनी फुरसत और समझ !
उनको तो बस मेहनत मजदूरी कर अपना और
अपने बच्चों का लालन पालन करना है ।
सारे देश का भी भरण पोषण करना है।
वो नही खड़े चौराहों में ,
ना सड़कों और शहरों में,
वो तो अब भी काम में डूबा अपने खेतों में।

दोस्तों ! धोखे में मत आना ,
इनकी चिकनी चुपड़ी बातों से बहक मत जाना ।
ना ही यह किसान है ,
ना ही उनके सच्चे हितैषी ।
यह तो उनके दर्द गम और आहोें की गर्मी,
में अपनी स्वार्थ की रोटियां सेकने निकले हैं।
उनके अधिकारों और हितों का नाम लेकर ,
खुद लाभ उठाने निकले हैं।


याद करोगे अपने अमर शहीदों और
महान समाज सुधारकों को ।
तो स्मरण होगा ।
उनके महान कर्म, योगदान और बलिदान ,
उनके सदा जीवन उच्च विचारों को याद करोगे,
स्मरण होगा ।
ऐसे होते है अच्छे ,महान ,देश और समाज के सच्चे समाज सुधारक ।
ऐसे होते हैं आंदोलनकारी ।

यह तो है भेड़ की खाल पहने ,
नेक नियति का मुखौटा पहने ,
खूंखार भेड़िया !राक्षस ! शैतान!
यह नहीं आंदोलनकारी ।