मंगलवार, 1 जून 2021

एक मुलाकात प्रकृति से .

 



मैने पूछा प्रकृति से" बोल तेरे क्या हाल है ? "

प्रकृति ने कहा "मैं तो ठीक ही हूं तुम सुनाओ ,
तुम्हारे क्या हाल है ? "

मैने पूछा " ठीक ही हूं का क्या मतलब !
क्या तू खुश नहीं है ।
हुए हम जबसे लॉक डाउन में कैद ,
तू फिर भी उदास है क्यों ? ""

प्रकृति ने कहा " कब तक रहोगे बंद ,
कभी तो बाहर निकलोगे ।
और निकल कर फिर से प्रदूषण फैलाओगे।
इसीलिए मैं उदास हूं ।

मैने कहा " तू उदास मत हो ,अब ऐसा न होगा ।
इस महामारी से हम इंसान को बड़ी ठोकर लगी है ,
शायद अब यह गुनाह नहीं होगा ।"

प्रकृति ने कहा " शायद !! इस शायद पर मैं कैसे
भरोसा कर लूं ।
इंसान तो इंसान है फिर बदल सकता है ,
इसकी फितरत पर कैसे यकीन कर लूं ?"
प्रकृति !!

"तुम चुप रहो ! मुझे कहने दो ।
मेरे दिल में है जो गुबार उसे बाहर निकालने दो ।
पहले भी लॉक डाउन लगा था।
मैं बड़ी खुश हुई थी, झूमी थी इतराई थी ।
मेरी नदिया निर्मल साफ दर्पण बन गई थी ।
मेरे पर्वतों और मैदानों में हरियाली के कालीन
बिछ गए थे ।
पेड़ पौधों के चेहरे में कांति आ गई थी ।
बागों में फूलों ने मुस्काना सिख लिया था ।
मेरी तो रंगत ही बदल गई थी ।
मैं तब इतनी खुश थी,इतनी खुश में पहले कभी नहीं थी ।
दिन रात ईश्वर को इस नए खुशनुमा जीवन के लिए
धन्यवाद करती थी।
और उसकी ऐसी ही कृपा बनी रहे
यह दुआ करती ।
लेकिन !!
अब सब फिर से सब बर्बाद हो गया।
मेरा सुन्दर सपना टूट गया ।
अब तक जो गुनाह करते रहे तुम ,
मैने सदा माफ किया ।
मगर अब की बार तुमने घोर पाप किया ।
तुमने मेरी नदियों को लाशों से भर दिया।
तुमने इंसानों का जो तिरस्कार किया सो किया,
मेरी नदियों का भी अपमान किया ।
पाप मोचनी मेरी गंगा " शव वाहिनी" क्यों और
कैसी बनी ?
भागीरथ द्वारा स्वर्ग से आमंत्रित की गई मेरी ,
निर्मल ,सुन्दर और पवित्र गंगा को तुमने
दूषित ही किया था अब तक ।
मगर इस बार तो तुम इंसानों के कुकर्मों
की तो अति हो गई ।
अब किस मुंह से उसके पास जाकर धोगे ,
अपने पाप ।
क्योंकि यह तो है महापाप ।
अब तो मुक्ति मिलने से रही ।
अब नहीं मिलेगी मुक्ति ।
मैं तुम इंसानों को कभी क्षमा नहीं करूंगी ।"

सहसा मेरी नींद खुली और मेरा सपना टूटा ।
और मेरा दिल दर्द से भर गया।