अब आंसू बन जायेंगे अंगारे ...
( निर्भया और आसिफ़ा की वार्तालाप शैली में कविता)
स्वर्ग में आते देखकर ,
आसिफ़ा और नन्ही बच्चियों को ,
मुरझाई हुई , कुम्हलाई हुई सी ,
क्षति ग्रस्त ,टूटी हुई कलियों को ,
निर्भया के मुख से आह निकल पड़ी .
लिपटाकर अपने गले से बड़ी बहिन,
फफक-फफक कर रो पड़ी .
उन बच्चियों को जब उसने ह्रदय से लगाया ,
घायल रूह , जर-जर जिस्म और आहत आत्म-सम्मान,
सब मंज़र एक साथ आँखों के सामने आया .
कैसे एक कचरे की तरह सड़क पर फैंका गया उसका
लहू-लुहान ,अधमरा सा तन , सब याद आ गया.
क्या इन नन्ही बच्चियों के साथ भी ,
वही दरिंदगी दोहराई गयी ?
क्या इंसानियत अभी तक होश में नहीं आई ?
युवतियां तो क्या ,बेचारी मासूम बच्चियां भी ,
इनके वेह्शिपन के निशाने पर आई .
पूछा उसने आसिफ़ा से कंपकपाते हुए ,
'' क्या हुआ बहिन ! तुम्हारे साथ यह क्या हुआ ?
और क्यों?
क्या समाज में , कानून में ,पुरुषों की सोच में
कोई बदलाव नहीं हुआ ? ''
कहा आसिफ़ा ने सूबकते हुए ,'' नहीं दीदी !
कुछ भी नहीं बदला .''
ना समाज बदला ,ना कानून बदला ,और ना ही
पुरुषों की सोच बदली .
पुरुषों के लिए नारी बस भोग्या थी ,और अब भी है ,
और रहेगी.
कोई भी मिले , शिशु कन्या, नन्ही बालिका ,युवा और
बुज़ुर्ग ,उनकी नज़र में नारी -नारी ही रहेगी .
इंसान नहीं वोह इनके लिए ,एक वासना पूर्ति का जरिया है.
क्या करें? इस पुरुष समाज का हमारे प्रति ऐसा ही
घिनोना रूप और कुत्सित नजरिया है .
जानवरों से भी बदतर करते हैं यह हमारे साथ ,
वेहशियाना सलूक .
और उसके बाद मार डालते हैं जान से , और फेंक देते हैं
गंदे नाले में ,जला डालते हैं हमारे क्षत -विक्षत शव को भी ,
ताकि ना मिल सके किसी को कोई सबूत .
और कभी- कभी तो लाश के साथ भी .......
दीदी ! हमारे साथ भी ....
कहकर अपना फ़साना आसिफ़ा फूट- फूट कर रो पड़ी .
और उसके साथ अन्य मासूम बच्चियां भी रो पड़ी .
बहनों के दर्द से निर्भया का कलेजा चीर गया ,
आँखों से फिर लहू बनकर आंसुयों का दरिया उमड़ गया.
गले लगाकर अपनी दुखी बहनों को ,
होंसला देते हुए निर्भया बोली ,
'' कोई बात नहीं बहनों ! हमारे दर्द, हमारी आहें
अब रंग लायेंगी.
यह आसू हमारे अंगारे बनकर ,इस पाप-से भारी हुई धरती को ,
जलाएगी.
जब इस देश की अदालत ने हमारी फरियाद नहीं सुनी ,
तो खुदा की सबसे बड़ी अदालत हमारी फरियाद सुनेगी .
और अब देखना तुम ,
अब कयामत बस आने को है ,और आकर रहेगी. ''
ना समाज बदला ,ना कानून बदला ,और ना ही
पुरुषों की सोच बदली .
पुरुषों के लिए नारी बस भोग्या थी ,और अब भी है ,
और रहेगी.
कोई भी मिले , शिशु कन्या, नन्ही बालिका ,युवा और
बुज़ुर्ग ,उनकी नज़र में नारी -नारी ही रहेगी .
इंसान नहीं वोह इनके लिए ,एक वासना पूर्ति का जरिया है.
क्या करें? इस पुरुष समाज का हमारे प्रति ऐसा ही
घिनोना रूप और कुत्सित नजरिया है .
जानवरों से भी बदतर करते हैं यह हमारे साथ ,
वेहशियाना सलूक .
और उसके बाद मार डालते हैं जान से , और फेंक देते हैं
गंदे नाले में ,जला डालते हैं हमारे क्षत -विक्षत शव को भी ,
ताकि ना मिल सके किसी को कोई सबूत .
और कभी- कभी तो लाश के साथ भी .......
दीदी ! हमारे साथ भी ....
कहकर अपना फ़साना आसिफ़ा फूट- फूट कर रो पड़ी .
और उसके साथ अन्य मासूम बच्चियां भी रो पड़ी .
बहनों के दर्द से निर्भया का कलेजा चीर गया ,
आँखों से फिर लहू बनकर आंसुयों का दरिया उमड़ गया.
गले लगाकर अपनी दुखी बहनों को ,
होंसला देते हुए निर्भया बोली ,
'' कोई बात नहीं बहनों ! हमारे दर्द, हमारी आहें
अब रंग लायेंगी.
यह आसू हमारे अंगारे बनकर ,इस पाप-से भारी हुई धरती को ,
जलाएगी.
जब इस देश की अदालत ने हमारी फरियाद नहीं सुनी ,
तो खुदा की सबसे बड़ी अदालत हमारी फरियाद सुनेगी .
और अब देखना तुम ,
अब कयामत बस आने को है ,और आकर रहेगी. ''