मगरमच्छ के आंसू (कविता)
बड़ी देर कर दी नेता जी ,
आपने आने में.
सब कुछ खत्म हो गया ,
दो आंसू बचे हैं बस ,
हमारी आँखों के पैमाने में.
अब तुम क्यों आये हो ?
हमारे दर्द पर अपने दो ,
मगरमच्छ के आंसू बहाने आये हो.
ओह्हो ! समझ में आ गया ,
तुम क्यों आये हो.
तुम जले हुए घरों का धुंआ ,
देखने आये हो.
या इस बाकि बचे जल रहे घरों की
आंच पर
अपनी गन्दी राजनीति की रोटियां ,
सेकने आये हो.
या जले हुए हमारे ज़ख्मों पर नमक,
और घी डालने आये हो.
फिर भी तुम्हें देखने का शौक है ,
या कोई रस्म अदाएगी ,
महज औपचारिकता हेतु ,
तो देख लो .
इन घरों में क्या -क्या जला है ,
इस आग में जली है ,
माताओं की आस.
किसी बिरहन की प्यास,
किसी लकड़ी के घोड़े की काठी ,
किसी बूढ़े पिता की लाठी.
और किसी बहिन की राखी.
चूल्हे टूटे पड़े हैं,
किताबे , जली हुई हैं,
खिलोने टूटे पड़े हैं,
कहीं कुछ कपडे जले हुए पड़े हैं,
कहीं फटे हुए पड़े हैं,
कहीं दुपट्टे तार -तार हुए पड़े हैं.
यहाँ मान -मर्यादा का ,
सपनो का ,
आशाओं का ,
अरमानो का ,
खून हुआ है.
यहाँ मानवता का खून हुआ है.
तुम इन खून से सनी लाशों पर ,
अपने दो मगरमछी आंसू बहाने आये हो.
मानवता के शत्रु ,वेह्शी ,दरिन्दे ,
तो सब कुछ बर्बाद करके चले गए.
तुम अब क्या अपने वोट बैंक के लिए ,
वोट खरीदने आये हो ?
बेसहारा ,मजबूर , शौक -संतप्त बचे हुए ,
लोगों के गम चंद रुपयों से खरीदने आये हो.
बेशक तुम एक कुशल व्यापारी हो ,
जो जनता की जिंदगियों को रुपयों -पैसों से ,
तौलने आये आये हो.
तुम बहुत शानदार अभिनेता भी हो ,
लोगों की बेबसी पर नकली आंसू बहाना ,
तुम्हारी कुशल नाटकीयता में शामिल है.
ऐसे नकली आंसुओं को मगरमच्छ के
आंसू ही तो कहा जायेगा.
बड़ी देर कर दी नेता जी ,
आपने आने में.
सब कुछ खत्म हो गया ,
दो आंसू बचे हैं बस ,
हमारी आँखों के पैमाने में.
अब तुम क्यों आये हो ?
हमारे दर्द पर अपने दो ,
मगरमच्छ के आंसू बहाने आये हो.
ओह्हो ! समझ में आ गया ,
तुम क्यों आये हो.
तुम जले हुए घरों का धुंआ ,
देखने आये हो.
या इस बाकि बचे जल रहे घरों की
आंच पर
अपनी गन्दी राजनीति की रोटियां ,
सेकने आये हो.
या जले हुए हमारे ज़ख्मों पर नमक,
और घी डालने आये हो.
फिर भी तुम्हें देखने का शौक है ,
या कोई रस्म अदाएगी ,
महज औपचारिकता हेतु ,
तो देख लो .
इन घरों में क्या -क्या जला है ,
इस आग में जली है ,
माताओं की आस.
किसी बिरहन की प्यास,
किसी लकड़ी के घोड़े की काठी ,
किसी बूढ़े पिता की लाठी.
और किसी बहिन की राखी.
चूल्हे टूटे पड़े हैं,
किताबे , जली हुई हैं,
खिलोने टूटे पड़े हैं,
कहीं कुछ कपडे जले हुए पड़े हैं,
कहीं फटे हुए पड़े हैं,
कहीं दुपट्टे तार -तार हुए पड़े हैं.
यहाँ मान -मर्यादा का ,
सपनो का ,
आशाओं का ,
अरमानो का ,
खून हुआ है.
यहाँ मानवता का खून हुआ है.
तुम इन खून से सनी लाशों पर ,
अपने दो मगरमछी आंसू बहाने आये हो.
मानवता के शत्रु ,वेह्शी ,दरिन्दे ,
तो सब कुछ बर्बाद करके चले गए.
तुम अब क्या अपने वोट बैंक के लिए ,
वोट खरीदने आये हो ?
बेसहारा ,मजबूर , शौक -संतप्त बचे हुए ,
लोगों के गम चंद रुपयों से खरीदने आये हो.
बेशक तुम एक कुशल व्यापारी हो ,
जो जनता की जिंदगियों को रुपयों -पैसों से ,
तौलने आये आये हो.
तुम बहुत शानदार अभिनेता भी हो ,
लोगों की बेबसी पर नकली आंसू बहाना ,
तुम्हारी कुशल नाटकीयता में शामिल है.
ऐसे नकली आंसुओं को मगरमच्छ के
आंसू ही तो कहा जायेगा.