हिन्दू -मुस्लिम ,सिख -ईसाई ,
आपस में थे कभी भाई-भाई ।
भाई -भाई से जुदा हो गया अब,
यह खाई किसने दरम्यान बनाई ?
एक दूजे के दिल में नफरत की आग ,
आखिर किसने और क्यों भड़काई ?
एक दूजे के मजहब को मान देते थेजो ,
उनमें बैर की तहजीब कहाँ से आई ?
एक दूजे के परिवार को संभालते थे वो,
जब भी उनपर कभी बुरी घड़ी आई ।
अब बने हैं एक दूजे की जान के दुश्मन ,
हाँ !कभी थे हमदम ,हमराज़ ,हमराही ।
इन नादानों ने तो भगवान को भी बाँट दिया ,
मंज़िल जब एक है तो इतनी राहें कैसे बन आई ?
अरे दिवानों ! महज अपने मतलब के लिए ही ,
इन सियासतदारों ने तुम्हारे बीच दीवार बनाई ।
अब न समझोगे तो कब तलक समझोगे तुम ,
आखिर बरसों पुरानी कौमी एकता कहाँ खोगई ?
वतन पूछता है तुमसे , किसके बहकावे में आकार ,
मेरी गंगो-जमुनी तहजीब की आन तुमने मिटाई ?
मेरे घर के चिरागो! ,मत लड़ो आपस में,अमन से रहो ,
नफरत की आग नहीं,मुझे चाहिए प्यार की रोशनाई ।
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