चाय की प्याली ( कविता)
जिसके बिना है हर सुभह अधूरी ,
जिसके बिना हर शाम अधूरी ,
या ना हो चीनी और चायपति ,
तो रह गयी फिर मेहमान नवाजी अधूरी।
मौसम चाहे कोई हो ,
कारण चाहे कोई हो ,
ख़ुशी हो या गम हो ,
पीने वाले को बस पीने का बहाना चाहिये.
उसी तरह चाय प्रेमी को बस ,
एक कप चाय का प्याला चाहिये.
कोई मेजबान ,खाने को भले ही ना पूछे ,
पानी या कोल्ड-ड्रिक पूछे या ना पूछे ,
मगर वोह चाय के लिए ज़रूर पूछे ,
गर वोह ना पूछे ! तो समझो ,
वोह मेहमान -नवाजी में फेल।
बड़ा बेदर्द ,कंजूस और सिरफिरा है वोह शख्स
हमारे लिए : जो हमें चाय को ना पूछे ,
एक कप प्याले का ही तो सवाल था ,
कोई दुनिया की जागीर तो चाही नहीं थी।
ना ही आसमान से तारे तोडके लाने को कहा था.
किसी की जिंदगी तो मांगी नहीं थी।
भले ही कोई चीनी ना भी डाले,
बस ! एक चम्मच अपना प्यार ही घोले के देदे।
कोई ले ले बेशक हमारी सारी धन दौलत।
बस एक गरम-गरम चाय का कड़क प्याला देदे।
चाय नहीं है ज़हर ,
है यह भी सेहद के लिए अच्छी चीज़।
डोक्टर भी अब मानते है.
चाय से दूर होती है हर बिमारी।
है यह सर्वथा लाभ करी ,
मूड ख़राब को ,तनाव हो ,
सर्दी-जुखाम हो , थकान हो ,
सर्दी-जुखाम हो , थकान हो ,
बुखार हो या सर दर्द भारी।
चाय तो राम -बाण ओषधि हमारी।
हम तो क़सम से चाय का दामन कभी नहीं छोड़ेंगे।
है यह हमें जिंदगी से प्यारी।
मर भी जाएँ गर तो गंगा जल के बदले ,
चाय का एक प्याला ही मुंह में डलवाएंगे।
हम तो इसी के लिए जियेंगे ,
और इसी के लिए मर जायेंगे।
हमें तो सारे जहाँ से है प्यारी।
हमारी चाय की प्याली।
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