ममता पर किसी का एकाधिकार नहीं,
कौन कहता है पशु का इसपर अधिकार नहीं,
भगवान ने तो नहीं बनाया कोई ऐसा प्राणी ,
जिसके भीतर भावनाओं का सागर नहीं ।
हर माँ का दिल अपनी संतान के लिए तड़पता है,
फिर वो चाहे मानव हो या पशु ,इससे कोई सरोकार नहीं।
प्रसव -पीड़ा की वेदना भी तो समान ही होती है,
मानवव माँ को अधिक तो क्या पशु माँ को कम होती है ?
नारी गर्भ धारण करती है संतान की लालसा में ,
तो क्या मादा पशु की संतान की लालसा कम होती है ?
नारी की बड़ी सेवा करते गर्भावस्था से संतानउत्पति तक ,
पशु मादा को भी समान देखभाल और प्यार की ज़रूरत होती है।
नारी जितना स्नेह लुटाती , दुलारती है अपने नवजात शिशु को ,
पशु मादा भी अपनी जिव्ह्या से चाटकर दुलारती है अपने शिशु को ।
अरे मानवो ! इतनी भी मानवता मत भूलो के दानव बन जाओ ,
इन भोले ,मासूम , बेज़ुबान प्राणियों के जीवन का सत्कार करो ,
प्रभु की अनमोल सरंचना / भेंट समझ इनका सरंक्षण करो ।
आखिर सर्वभोम ममता की परिभाषा यही है होती।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें