बुधवार, 10 जून 2020

ममता ( कविता)

                                  




           ममता पर किसी का एकाधिकार नहीं, 
         कौन कहता है पशु का इसपर अधिकार नहीं, 
         भगवान ने तो नहीं बनाया कोई ऐसा प्राणी ,
         जिसके भीतर  भावनाओं का  सागर नहीं । 
        हर माँ का दिल अपनी संतान के लिए तड़पता है,
      फिर वो चाहे मानव हो या पशु ,इससे कोई सरोकार नहीं। 
       प्रसव -पीड़ा की वेदना भी तो समान ही होती है, 
     मानवव माँ को अधिक तो क्या पशु माँ को कम होती है ? 
     नारी गर्भ धारण करती है संतान की लालसा में ,
   तो क्या मादा पशु की संतान की लालसा कम होती है ? 
   नारी की बड़ी सेवा करते गर्भावस्था से संतानउत्पति तक , 
  पशु मादा को भी समान देखभाल और प्यार की ज़रूरत होती है। 
 नारी जितना स्नेह लुटाती , दुलारती है अपने नवजात शिशु को ,
 पशु मादा भी अपनी जिव्ह्या से चाटकर दुलारती है अपने शिशु को । 
  अरे मानवो ! इतनी भी मानवता मत भूलो के दानव बन जाओ ,
  इन भोले ,मासूम , बेज़ुबान प्राणियों के जीवन का सत्कार करो , 
   प्रभु की  अनमोल सरंचना / भेंट समझ इनका सरंक्षण करो । 
   आखिर सर्वभोम ममता की परिभाषा यही है होती।
                         
                       
                         
                        
                        

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