गुरुवार, 19 दिसंबर 2019

सुनिए नेताजी ! (हास्य-व्यंग्य कविता)

                         सुनिए नेताजी ! (हास्य-व्यंग्य कविता)




सुनिए नेताजी ! आपको बातें बनाना खूब आता है ,
आवाम को मूर्ख/दीवाना बनाना भी खूब आता है ।
खुद ही लगाकर आग  असंतोष / विरोध की और ,
खुद ही उस आग में और घी डालना खूब आता है।
जबसे आज़ादी मिली देश को क्या हालत सुधार सकी ?
बस खुद की कमियों को दूसरों पर थोपना आता है ।
आप संसद में बैठकर करते क्या है? सब जान गए हम,
मेज-कुर्सियाँ पटकना,हल्ला मचाना ही आपको आता है।
कभी एक दूजे पर आरोप /प्रत्यरोप ,अपशब्द ,कटाक्ष आदि ,
और एक दूसरे के लिए साज़िशों का जाल बिछाना आता है।
देश को कब आपने देश समझा,समझा इसे शतरंज की बिसात ,
और  आवाम को मोहरों की तरह इस्तेमाल करना आता है।
चुनावों के समय '' कैसे है आप '' ,और फिर कहें ''कौन है आप?'
सत्ता के हाथ में आते ही अजनबी बन जाना आपको आता है ।
खुद ही तो पाल रखे है अपने दामनों में अजगर /बिच्छू आपने ,
और करते हैं समाज सुधार की बात, आपको दोगलापन खूब आता है ।
बस अब रहने भी दीजिये और मुंह मत खुलवाईए आप हमारा ,
आपकी कलई  आपकी आवाम के सामने खोलना हमें भी खूब आता है।






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