यह झूठा दिखावा क्यों ? ( कविता)
आदर है या नहीं अपनी माँ के लिए दिलों में ,
मालूम नहीं ! मगर दिखावा तो करते हो .
साल भर तो पूछते नहीं माँ की खैर -खबर भी,
गनीमत है यह भी मदर'स डे के दिन पूछ लेते हो.
माँ की नेकियाँ, सेवा, स्नेह और ममता का मोल ,
तुम बस इस खास दिन को ही क्यों याद करते हो ?
अपार वेदना सहकर जिस माँ ने तुम्हें जन्म दिया ,
उसी माँ के दिल पर अक्सर चोट पहुंचाते हो.
याद नहीं क्या तुम्हें तुम्हारी हर ज़रूरत/ चाहत के लिए ,
माँ ने की कुर्बानी ,उसी माँ से तनख्वाह अपनी छुपाते हो.
यह कैसा प्यार है तुम्हारा ,क्या समझे वोह भोली माँ ,
पाई -पाई के लिए तरसाने वाले ,एक दिन महंगे तोहफे लाते हो.
तुम्हें तो विधाता ने माँ दी ,तुम्हें तो उसकी कद्र नहीं,
माँ की ममता को तरसे हुए उन बदनसीबों से जाकर पूछते हो ?
लाये हो जाने कहाँ से यह बनावटी प्यार दिखने का अंग्रेजी तरीका ,
अपनी संस्कृति /सभ्यता को भूल गए , खुद को फिर भी इंसा कहते हो !!
यह मदर्स डे / फादर्स दे मनाना फ़िज़ूल है ,बकवास है ,
बनना है तो श्रवणकुमार से बनो ,क्या बन सकते हो ?
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