मैं और मेरा भारत (कविता )
मेरी और मेरे भारत की ,
किस्मत है एक जैसी .
कभी उबड़ -खाबड़ रास्तों ,
कभी समतल मैदान जैसी .
कभी जिंदगी के तुफानो में
हिचकोले खाती ,तो
कभी तुफानो से पार लगती सी .
कभी आशा -निराशा में झूलती ,
कभी आनंद-उत्सव मनाती सी.
टूटी हुई नाव कहेंया जर्जर ईमारत ,
मगर जीने का होंसला रखती सी .
कभी आस्तीनों के साँपों से झूझती ,
तो कभी दुश्मनों का सामना करती .
कभी गुज़रे हुए सुनहरे ज़मानो और ,
गुज़रे हुए अपने प्यारों को याद करती .
अब भी हैं कुछ शेष हमनवां ,हमराज़ ,
जिनके प्यार को संजोये हुए है वोह.
दिल टूट चूका है फिर भी ज़िंदा है,
टूटे हुए दिल को जोड़े हुए है वोह.
अरमां है, चाहतें ,कुछ ख्वाब भी हैं,
शेष हैं अभी ,खत्म तो नहीं हुए .
जाने किस जीवनी शक्ति से प्रेरित,
होकर उसने आशा के दीप हैं जलाये हुए .
किस्मत अब कैसी भी है अच्छी या बुरी ,
विधाता ने जो नियति में लिख दी.
बदली नहीं जा सकती ,है हमें मालूम .
मगर जब तक साँस है ,तब तक आस है ,
मौत से पहले ही मर जाये ,
सुनो मेरे प्यारे वतन ! ऐसे तो कायर
नहीं है न हम !!
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