उजड़ गए चमन जिनके ....(ग़ज़ल)
उजड़ गए चमन जिनके ,आपका गया क्या ?
चंद अफ़सोस के अश'यार के सिवा गया क्या ?
फरमाते हैं आप कि आपको खबर न हो सकी ,
तो आप अब तक झूठे दिलासे देते रहे क्या ?
यह भी क्या खूब अदा रही आपकी नादानियों की ,
के वोह मासूम थे खौफज़दा, आप सुकून में थे क्या ?
किस तरह सभी ३९ मासूमों का क़त्ल हो गया,
बरसों से दफ़न उन लाशों का अब पता दे रहे है क्या ?आपको क्या एहसास किसी अपने के खोने का !
गर होता उन मासूमों में आपका भी कोई ,तो होता क्या ?
फिर देखते हम किस बेपरवाही औ सुकून से सोते आप ,
फिर महसूस करते ,अपनों के खोने क गम होता है क्या ?
मजबूर थे,मजलूम थे ,गरीबी की मार से बेचारे थे परेशां ,
तभी तो गए थे परदेश वर्ना अपनों को छोड़कर जाता है क्या ?
वोह तो गए थे अपने सपने खरीदने, अपनी मौत से अंजान ,
लायेंगे खुद को कफ़न में लपेटकर उन को पता था क्या ?
अरे ! अब तुम क्या लोगे बदला बेकसूरों /मासूमों के खून का ?
यह इन्साफ तो खुदा के हाथ में है ,आप सियासत का खेल खेलोगे क्या ?
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