इन हसरतों से कह दो। .... (ग़ज़ल)
इन हसरतों से कह दो की न मचलें बेवज़ह ,
मैने इन्हें अक्सर दिलों में टूटते हुए देखा है.
बुझते देखें हैं ख़्वाब चश्म-ओ-चिराग की मानिंद ,
हर एक अक्स धुएं में बदलते हुए देखा है।
मुझे नहीं मालूम की क्या होती है ख़ुशी ?क्योंकी ,
तबसुम को अपने मैने अश्क़ों में बदलते देखा है.
मेरा दिल ना हासिल कर सका ,थोड़ा सा भी सुकून ,
ज़हन में अपने तूफान उठाते कशमकशों को देखा है।
बहारों का आगाज़ भी न हो सका था की पा लिया अंजाम ,
मैने अपनी क़िस्मत को दरवाज़े बंद करते हुए देखा है।
मेरी आरज़ूएं ,ख्वाइशें कर कर के मिन्नतें खुदा से हार गयीं ,
मैने ज़िंदगी को अब तन्हाईओं में सिसकते हुए देखा है..
मैं रिश्तों की डोर को भी मजबूती से ना थाम पायी सकी ,
मैने दोस्ती /और प्यार को नफरत में बदलते देखा है.
यह बेचैन ,उलझी हुई सर्द आहें ,और सांसों पर पहरा !
अपनी रूह को आज़ादी के लिए तड़पते हुए देखा है.
व्यक्ति की आतंरिक पीड़ा, विवशताओं और निराश जिन्दगी के सजीव चित्रण के साथ साथ रिश्तों में परिवर्तन का अहसास दिलाती है I
जवाब देंहटाएंकर्म करते जाओ परिणाम उसके हाथ में,
बुझते चिरागेगम व्यस्त ज़िन्दगी के साथ