आखिर क्यों ? ( कविता)
पुरुष क्यों होता है इतना कृतघ्न ,
जिसे नज़र नहीं आते ,
नारी के उपकार ,
उसकी भलाई ,
उसका प्रेम ,
उसकी सेवा,
सहनशीलता ,कर्तव्यनिष्ठता।
वैसे तो पुरुष को ही लेनी चाहिए शिक्षा ,
इन सब सदगुणो कि ,
नारी से। ,मगर नहीं !
क्योंकि पुरुष होता है अहंकारी।
नारी के समक्ष उसे झुकना
उसे पसंद नहीं।
विनम्रता का अर्थ ही है झुकना ,
फिर कैसे होगा मंज़ूर ?
मर्दानगी पर आंच आने का जो भय है।
अहंकारी है तभी तो नहीं दिखते ,
नारी के गुण।
यदि देख सकता तो ,
खुद कि नज़र में छोटा नहीं हो जाता।
पुरुष अहंकारी होता है ,
तभी तो संवेदन शील नहीं होता ,
नारी कि तरह ,
जो उसे किसी कि पीड़ा, आह ,दुःख, संताप ,वेदना
महसूस हो।
किसी आंसू के पीछे छुपे दर्द का एहसास हो ,
किसी की निशब्द चीत्कार कि समझ हो।
वोह उम्मीद तो करता है कि नारी उसे समझे ,
मगर ज़रा कोई उससे पूछे ,
उसने कितना नारी को समझा।
क्योंकि गर्ज़मंद है नारी ,
आर्थिक रूप से न सही ,
भावनात्मक रूप से ,
उसपर निर्भर है नारी।
इस आधुनिक युग में भी !
पुरुष अहंकारी है ,
अतः उसे ज्ञात है ,
वोह गर्ज़ मंद नहीं है ,
वोह निर्भर भी नहीं है ,
इसीलिए वोह क्यों करे प्रयास ?
नारी कि नज़रमें उठने का ,
अपने सम्बन्धों में आई दूरियां मिटने का ,
नारी के ह्रदय में स्थान बनाने का ,
सिर्फ नारी को ही है गरज़ ,या ज़रूरत ,
पुरुष के नाज़ उठाने का ,
पुरुष को तो क्षमा मांगनी भी नहीं आती ,
ज़रूरत नहीं है न !
यह शब्द भी नारी के लिए ही बना है।
नारी को फिर भी देना है उसे सम्मान ,
भले ही वोह इसके योग्य हो या ना हो।
क्योंकि वोह पुरुष है .
इसीलिए वोह गरजमंद नहीं ,
अधिकारी है।
वोह अधिकारी है ,
नारी कि सेवा का ,
नारी कि सेवा का ,
त्याग का ,
समर्पण का,
निष्फल कर्तव्यों का ,
प्रेम का ,
सहनशीलता का ,
पुरुष इतना अहंकारी क्यों है ?
पुरुष अधिकारी भी क्यों है?
क्यों किया विधाता ने इतना अंतर ?
आखित क्यों ?
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