बलिदान माता -पिता का (कविता)
फूलों को खिलाने हेतु ,
जो रक्त अपना सीचते हैं .
मुस्कराएँ ,खिलखिलाएं वह ,
इसीलिए गम खुद खाते हैं .
चैन से वोह सोयें इसीलिए ,
खुद काँटों पर सोते हैं .
उनके आंसुयों को भी जो
अपने आंसुयों के साथ पी लेते हैं .
खुद चीथड़े पहनते हैं मगर
उन्हें रेशमी लिबास पहनते हैं .
उनका पेट भरने को जो ,
खुद भूखे रह जाते हैं .
जाने क्या -क्या बलिदान करता है
माता -पिता का ह्रदय .
अपने बगिया के फूलों के लिए .
दुनिया की बुरी नज़रों से ,
जिंदगी की कड़ी तेज़ धुप से
बचाने को अपने आँचल में छुपाते हैं
अपनी संतान के लिए माता -पिता
क्या -क्या कष्ट उठाते हैं
तमाम उम्र संघर्षों की आग में तपा करते हैं .
किसलिए !
सिर्फ इसीलिए की उन्हें इस प्यार और सेवा का
प्रतिफल मिले .
नहीं ! वोह तो प्रति फल भी नहीं मांगते .
बस अपनी संतान के ह्रदय में उनके प्रति
सदा रहे प्यार व् सम्मान .
बस !
मगर आज की युवा पीड़ी
जो है आधुनिकता के रंग में रंगी हुई ,
सब संस्कार भूल चुकी है .
यह कृतघ्न संताने ,
अपने बुजुर्गों के उपकार का बदला .
देती हैं इस तरह से ,
इस रूप में ..
यह करते है उनकी भावनाएं की अनदेखी .
उनके प्रति अपने फर्जों की तिलांजलि ,
उनकी राहों में कांटे बिछाकर ,
उन्हें दिनरात आंसू पिलाकर ,
उन्हें देते हैं तन्हाई .
उन्हें बेकार और पुराना कहकर
उड़ाते हैं उनका उपहास .
उनके अनुभव ,उनका ज्ञान ,
लगता हैं इन्हें out -dated .
और कभी बोझ समझ कर ,
भेज देते हैं वृद्ध आश्रम .
अरे !सम्मान की बात तो छोड़ा ,
संपत्ति के लिए यह निष्ठुर संताने ,
कर देती हैं माता-पिता की ह्त्या भी .
उस पर भी माता -पिता की ममता देखिये ,
ज़ख्म खाके भी कहते है ,
'' बेटा ! तुझे चोट तो नहीं लगी '' .
हज़ार बार दुत्कारे जाने पर भी ,
हज़ार बार प्रताड़ित किये जाने पर भी ,
दिल के टुकड़े के द्वारा किये जाने पर दिल का खून
फिर भी सलामती की दुया करता है ,
ऐसा होता है माता-पिता का दिल .
ऐसा होता है माता-पिता का बलिदान .
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