कतरा -कतरा दर्द ( कुछ शेर )
1, गुल-ऐ -शौक में कांटे आये हाथ ,
कितना फख्र था हमें अपने गुलिस्तान पर .
2, क्या ज़ुल्मत पड़ी tतेरे जानेके बाद ,
की रौशनी के लिए हमें अपना चिरागे-दिलजलना पड़ा .
3, गम देकर उम्र भर का ,
वोह दामन छुड़ाकर चले गए .
यही तकदीर थी हमारी ,
जो अब तक जिंदगी के दोराहे पर खड़े हैं .
4, चोट खाने की आदतपढ़ चुकी है हमें ,
अब क़दम - क़दम पर दर्द काएहसास क्या करना !
5, नहीं डरते अब हम किसी कज़ा से ,
कफ़न ओढ़ लेते हैं तब जब सुनाई दे उसके क़दमों की आहात .
6,साज़ -ऐ -दिल पर छेड़कर दर्द की ग़ज़ल ,
एक तराने की शक्ल दी है हमने अपनी जिंदगी को.
7, इंसान को परखना हमें कभी ना आया ,
जिसे भी सुनाया अफसाना- ए- दर्द ,
उसे ही दुश्मन पाया .
8, बागबान करने लगे तिजारत ,
अपने ही चमन के फूलों से ,
हर खून की कीमत परहै ,
खुदगर्जों की रहनुमाई देखिये .
6,साज़ -ऐ -दिल पर छेड़कर दर्द की ग़ज़ल ,
एक तराने की शक्ल दी है हमने अपनी जिंदगी को.
7, इंसान को परखना हमें कभी ना आया ,
जिसे भी सुनाया अफसाना- ए- दर्द ,
उसे ही दुश्मन पाया .
8, बागबान करने लगे तिजारत ,
अपने ही चमन के फूलों से ,
हर खून की कीमत परहै ,
खुदगर्जों की रहनुमाई देखिये .
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