प्रयास
जाने कितनी बार प्रयास किया मैंने ,
की जीवन को मुठ्ठी में बांध लूँ .
कभी सोचा गुब्बारे में बंद कर दूँ ,
नहीं गुब्बारे में नहीं !
बोतल में बंद कर दूँ .
संदूक में बंद कर दूँ खजाने की तरह .
किन्तु यह क्या ?
मेरे सभ प्रयास विफल हुए
सहसा ठोकर लगते ही मै गीर गई .और मेरे गिरते ही मेरा अमूल्य जीवन
फिसलता हुआ ,
बिखरता हुआ ,उड़ता हुआ ,
मेरे सभी बन्धनों से आज़ाद हो गया .
और मै टूटी हुई ,हरी हुई ,थकी हुई ,स्वयं ही अपनी
मृत काया को लिए हुए ,नदी के तट पर
आ पहुंची
अपने विसर्जन हेतु।
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