शुक्रवार, 9 अक्तूबर 2020

वो कौमी एकता कहाँ गयी ( गजल )

 

हिन्दू -मुस्लिम ,सिख -ईसाई ,

आपस में थे कभी भाई-भाई ।

भाई -भाई से जुदा हो गया अब,

यह खाई किसने दरम्यान बनाई ?

एक दूजे के दिल में नफरत की आग ,

आखिर किसने और क्यों भड़काई ?

एक दूजे के मजहब को मान देते थेजो ,

उनमें बैर की तहजीब कहाँ से आई ?

एक दूजे के परिवार को संभालते थे वो,

जब भी उनपर कभी बुरी घड़ी आई ।

अब बने हैं एक दूजे की जान के दुश्मन ,

हाँ !कभी  थे हमदम ,हमराज़ ,हमराही ।

इन नादानों ने तो भगवान को भी बाँट दिया ,

मंज़िल जब एक है तो इतनी राहें कैसे बन आई ?

अरे दिवानों ! महज अपने मतलब के लिए ही ,

इन सियासतदारों ने तुम्हारे बीच दीवार बनाई ।

अब न समझोगे तो कब तलक समझोगे तुम ,

आखिर बरसों पुरानी कौमी एकता कहाँ खोगई ?

वतन पूछता है तुमसे , किसके बहकावे में आकार ,

मेरी गंगो-जमुनी तहजीब की आन तुमने मिटाई ?

मेरे घर के चिरागो! ,मत लड़ो आपस में,अमन से रहो ,

नफरत की आग नहीं,मुझे चाहिए प्यार की रोशनाई ।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें