ऐ कान्हा ! बता तू कहाँ है ? (कविता)
हे कान्हा ! बता तू कहाँ है ? ,
तेरे लिए ये दिल परेशां है .
कहाँ -कहाँ नहीं तलाश किया तुझे ,
मंदिर -मस्जिद या गुरूद्वारे में तुझे ,
कहाँ है तेरा ठिकाना ? रहता तू जहाँ है.....
पर्वत की कन्दराएँ या यमुना के किनारे ,
बाग़-बगीचों में या खडा कदम्ब के सहारे ,
प्रकृति के किस छोर में तू रवां है ?......
बच्चों में मासूमियत रह कहाँ गयी ,
इंसानों में इंसानियत रह कहाँ गयी ,
ऐसे में असम्भव है की मिले तू यहाँ .....
काली रात सा अँधेरा है संसार में ,
कहाँ से पायुं रौशनी अंधकार में ,
कौन सी ऐसी जगह मिलेगा तेरा निशा.......
तू गर मेरे दिल में है तो एहसास करवा,
मानसिक पीड़ा से मुझे निजात दिलवा,
मेरी रूह को रोशन कर हो जा जलवा नुमां........
या तो अपना वायदा निभा ,या मुझे मुक्ति दे ,
इन अंधेरों से लड़ने की या मुझे शक्ति दे ,
कहीं ऐसा न हो तेरी बेरुखी ले ले मेरी जां.....