शनिवार, 21 अगस्त 2021

हिंदुओं जाग जाओ !!

 






  आदरणीय प्रधान मंत्री जी की ,                                   अगुआई में अयोध्या हुई पूर्णतः हमारी ।                               इसके लिए उनका कोटि कोटि धन्यवाद । 

  

अयोध्या हमारी हुई तो उन्होंने ,                                              श्री राम जन्मभूमि मन्दिर का निर्माण करवाया।                उनका यह महान कार्य सदा रहेगा याद ।


अब कुछ ऐसी शिक्षा शुरू हो ,
जो धर्म शास्त्रो,वेद पुराणों आदि का ज्ञान दे ।
जो रामायण और महाभारत भी पढ़ाए ,
ऐसे विद्यालय खुलवा दें जहां पढ़ाई जाए विषारद ।

अपनी संस्कृति ,शिष्टाचार ,मानवीय मूल्यों का ज्ञान,
अपनी भाषा हिंदी और संस्कृत का ज्ञान ,
अति आवश्यक है हिंदू नई पीढ़ी को ।
नहीं जानते जो अपने मूल को अपितु करते है विवाद ।

सभी धर्म के अनुयायी करते है प्रचार प्रसार ,
अपने धर्म संबंधी ज्ञान ,पुस्तकों और आचरण का ।
बचपन से घुट्टी के रूप में मिलती है उनको ,
धर्म संबंधी सारी शिक्षा।
एक मात्र हिंदू धर्म क्यों बना रहे अपवाद ।

हमारे हिंदू धर्म में हमारी नई पीढ़ी को ,
यूं तो सारे विश्व भर का ज्ञान है।
देश और दुनिया की आर्थिक ,सामाजिक ,राजनीतिक
स्थितियों का ज्ञान है ।
दुनिया भर का फिल्मी ज्ञान है ।
बस अपने धर्म संबंधी ज्ञान नही है।
कौन इन्हें समझाए और कौन करे खुल के संवाद ।

शेष धर्म के लोग स्वयं और अपने बच्चों को ,
लेकर जाते है प्रतिदिन मस्जिद और गिरिजाघर।
परंतु हम स्वयं तो कभी कभी परंतु हमारे
बच्चों को नही लेकर जाते मंदिर ।
हमारे बच्चों को तो अपने देवी देवताओं के बारे में ,
ना ज्ञान है ना रुचि ।
अपितु पंडितों साधु संतो ,गुरुओं का करते हैं अपमान।
हम इन्हें समझाने से भी कतराते है की फिर
घर में होगा व्यर्थ में वाद विवाद ।

ऐसा कैसा चलेगा?
ऐसे तो हमारा हिंदू धर्म संकट में पड़ जायेगा ।
यदि नहीं होंगे एकजुट ,
और न ही जोड़ेंगे अपने बच्चों को हिंदू धर्म से,
तो हमारा धर्म नष्ट हो जायेगा.
और हमारा भारत वर्ष ,जो कभी कहलाता था,
आर्यव्रत ।वो परिवर्तित होकर जाने क्या बन जायेगा ।

गुरुवार, 12 अगस्त 2021

प्रतियोगिताओं का सच


 

  ये प्रतियोगिताओं का कैसा रिवाज चल रहा है , 

जो इनामात का लालच देकर लोगों को छलता है।


व्यवसायिक चैनलों में कभी संगीत तो कभी नृत्य ,
बड़ी आकर्षक सजावट लिए मंच लोगो को लुभाता है।

अति लोकप्रिय कला शिरोमणि न्यायधीश के रूप में, 
कुछ दिग्गज कलाकारों को न्योता दिया जाता है।


प्रतियोगियों की कला को मंत्रमुग्ध हो देख सुन कर ,
फिर उनके भाग्य का फैंसला किया जाता है।


दूध में से मलाई की तरह हर प्रतियोगी को छांट कर ,
शेष को पानी समझकर बाहर फेंक दिया जाता है ।

जो जीत गए वो तो भाग्य पर अपने नाज़ करते है ,
मगर जो हार गया वो आंसुओं से दामन भिगोता  है।

कितना दुखदाई होता है अस्वीकृति का वो लम्हा ,
यह तो उसे ही पता होता है जो अपमान सहता  है।

ऐसा ही मापदंड हर प्रतियोगिताओं का होता है,
साहित्य हो या शिक्षा,खेल संबंधी सबमें चलता है।

भाग्य आजमाने कई प्रतियोगी इसमें भाग लेते है ,
अपनी तरफ से हर कोई जी तोड़कर मेहनत करता  है ।

कहने भर को लोग कह देते है यह तो खेल है भाई !
हार और जीत तो जीवन में सदा चलता ही रहता है।

मगर भरोसा कैसे करें इन निर्णायको की नियत का ,
भेदभाव और कपट इनकी फितरत में शामिल होता  है।


  बेहतर होगा इन प्रतियोगिताओं से दूर रहा जाए,
  इनामात के मोह जाल से भी दूर रहा जाए,
ये ख्वाबों को पूरा करने के एवज में तुम्हारा  आत्म 
विश्वास और साहस आपसे  छीन लेता  है।