मेरे देश की अपनी एक अलग पहचान ..(कविता)
मेरे देश की है अपनी एक अलग पहचान ,
सारे जहाँ से प्यारा है मेरा भारत महान .
मेरे देश की युवा पीड़ी है मुरख ,नादान ,
कर नहीं सकती अपनी मिटटी की पहचान .
हमारी राष्ट्रभाषा हिंदी है गौरवपूर्ण ,भावपूर्ण ,
और यह छिडकते है अंग्रेजी पर अपनी जान .
वैभवशाली इतिहास हमारा और महान सभ्यता ,
यह विभिन्न संस्कृतियों /धर्मों /भाषाओँ की खान .
हमारे देश में जन्में है कई महान शूरवीर ,ज्ञानी ,
संत-कवि, कलाकार ,दानी ,देशभक्त,महात्मां.
अमन ,प्रेम, भाईचारा ,करुणा और इंसानियत ,
सर्व धर्म सद्भाव का पाठ पढाता है हिन्दुस्तान .
खेल, कला, विज्ञान, वाणिज्य में है अग्रणी ,
मगर शास्त्रों ,वेदों ,पुराणों का भी रखता संज्ञान .
मेरे देश की धरती सोना उपजाती है और ,
हरियाली / सुख-समृधि ज्यों हीरों की खान .
घर में है खजाना और यह बाहर लार टपकाते फिरें,
अपना देश ना भाए इन्हें करें विदेशों की ओर प्रस्थान .
क्या रखा है विदेशी सभ्यता में यह तो हैं बनावटी ,
स्वदेश की महान सनातनी सभ्यता से जो ये अनजान .
ना जाने क्यों ये करें प्रेम नकली कागज़ के फूलों से ?
विभिन्न रंगीन खुशबू से भरे असली फूलों की नहीं पहचान .
तुम हो ना शुक्रे ,मतलबी , भावहीन तुमसे क्या कहें ,
स्वदेश को जो जानते नहीं कैसे सौंप दे इसकी कमान .
मेरी सविनय प्रार्थना है तुमसे,
मेरे देश के सम्मान को धूल में न मिलाओ,
सारे विश्व में इसकी अलग पहचान ,एक रूतबा, सम्मान ,
जिसकी पावन मिटटी से बने तुम , ज़रा होश में आओ.