गुल मायूस है ........ ग़ज़ल
बाग़ में एक गुल को मायूस देखकर ,
हाल उसका पूछा पास उसके बैठकर ,
क्यों मायूस हो तुम ,क्या गम है तुम्हें ,
बता मेरे दोस्त ,क्या कहीं दर्द है तुम्हें .
आहो-ज़र्द मुखड़े को उसके मैने सहलाया ,
उसकी नाज़ुक पंखुड़ियों को भी सहलाया ,
उसने एक पलक मुझे देख फेर ली नज़र
बड़ी नफरत उसकी आँखों में आई मुझे नज़र .
पूछा मुझसे क्यों आये हो तुम ऐ इंसान !
कैसे बताऊँ हाल -ऐ-दिल तुम हो अनजान .
क्या कर लोगे गर जान भी तुमने लिया ,
क्या मिटा दोगे वो ज़ख्म जो तुमने दिया .
बड़ी कातर नज़रों से उसने देखा जब मुझे
मेरे ज़मीर ने ही बड़ा दुत्कारा तब मुझे .
नज़र आया आँखों के सामने एक मंज़र ,
अपने गुनाहों का एक बड़ा खौफनाक मंज़र .
एक हँसते -खेलते चमन को मैने वीरान देखा.
अपने वेह्शिपन की सूरत में बर्बादी को देखा .
क्यों अपने स्वार्थ में लालच में अंधा हो गया ,
जो वसुंधरा की गोद को बेदर्दी से सूना कर दिया .
क्यों मैने बाग़ उजाड़े ,क्यों पेड़ -पौधे मसल डाले ,
खेत-खलिहान को बंजर कर बड़े -२ पहाड़ तोड़ डाले .
नदियों का दामन मैला औ तालाबों को सुखा डाला ,
मेरी भूख ने सम्पूर्ण प्रकृति को भी निगल डाला .
गुनाह मैने किया और कीमत इन मासूमों ने चुकाई ,
धिक् मेरे मनुष्य होने पर क्यों मुझे लाज ना आई .
पश्चाताप के आंसू आँखों में लिए मैने गुल से कहा ,
मिटा दूंगा तुम्हारे सभी दुःख जो तुमने अब तक सहा .
इस धरती को ,तुम्हारे गुलशन को आबाद कर दूंगा ,
तुम्हारे मुखड़े पर मुस्कान को फिर से खिला दूंगा .
लहराओगे , झुमोगे मस्तानी हवा के साथ तुम मिलकर .
इत्मिनान रखो दोस्त ! ,जल्दी आयगा वोह वक़्त लौटकर
धिक् मेरे मनुष्य होने पर क्यों मुझे लाज ना आई .
पश्चाताप के आंसू आँखों में लिए मैने गुल से कहा ,
मिटा दूंगा तुम्हारे सभी दुःख जो तुमने अब तक सहा .
इस धरती को ,तुम्हारे गुलशन को आबाद कर दूंगा ,
तुम्हारे मुखड़े पर मुस्कान को फिर से खिला दूंगा .
लहराओगे , झुमोगे मस्तानी हवा के साथ तुम मिलकर .
इत्मिनान रखो दोस्त ! ,जल्दी आयगा वोह वक़्त लौटकर