शुक्रवार, 9 अक्तूबर 2020

हाय रे मजदूर जीवन (कविता)

 हाय रे मजदूर जीवन ,तेरी यही कहानी ,
भूखा प्यासा तन और आँखों में है पानी ।
विकास का पहिया चले देश का तेरे दम पर ,
इस भाग्य विधाता की किसी क्द्र न जानी ।
अपना सबकुछ होम कर जो करते मेहनत ,
परंतु पूरा वेतन देने में मालिक करे आनाकानी ।
कोई पूछे तो इनके दिल से कैसे गुज़र होता है? ,
बड़ी मुश्किल है महानगरों में जिंदगी निभानी ।
महंगाई के इस युग में क्या पहले कम दुखी थे !
उस पर महामारी ने आकर शुरुकर दी पैठ जमानी ।
गाँव से तो आए थे स्वजनो को छोडकर धन कमाने ,
मगर जब जीवन चर्या नहीं तो बेहतर है जान गंवानी ।
मरण तो लिखा ही है मजदूर संग घर मरे या सड़क पर ,
ऐसे में इनकी नज़र में महामारी से बचना है बड़ी नादानी ।
सरकार की योजनाए / सुविधाएं सारी किसके लिए है ?
विश्वास -अविश्वास के चक्रव्यूह में फंसी पूरी कहानी ।
यह कोई दो दलों की राजनीति है या कोई षड्यंत्र रचा हुआ ,
जिनके पाटन के बीच पिस रही है मजदूरों की ज़िंदगानी ।
भाग्य विधाता होकर भी देश का जो है भाग्य हीन ,लाचार,
ऐसे असहाये मजदूर जीवन को देखकर आ जाता है आँखों में पानी।

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