शुक्रवार, 9 अक्तूबर 2020

हम मनोरंजन का साधन नहीं .... (पालतू पशुयों का दर्द )

 हम मनोरंजन का साधन नहीं,
मगर तुम हमें इससे अधिक क्या समझते हो ।
हम तुम्हारे घर की शोभा बढ़ाएँ ,
बस इसीलिए हमें पालते हो ।
हमारे गले में अपने नाम का पट्टा डाल ,
हम पर अपना अधिकार जमाते हो।
फिर बड़ा ख्याल कर पालन-पोषण कर ,
अपार स्नेह लुटाकर हमें अपना आदी बना लेते हो।
और जब मन भर गया गली के किसी नुक्कड़ पर
बेसहारा छोड़ आते हो।
हम उस समय खुद को लुटे हुए ठगा सा महसूस करते हैं।
तुमने तो हमें समझा मनोरंजन का साधन ,
मगर हम नासमझ ,भोले ,मासूम प्राणी तुम्हे अपना खुदा समझ बैठे ।
यह हमारी भूल थी की तुम हो क्या ,और हम तुम्हें क्या समझ बैठे ।
यदि मान लो हम तुम्हारे घर जीवन पर्यंत तक रह ले ,
तो भी तुम अपने जीवन से हमें नहीं जोड़ते ।
दुख-दर्द, गम-खुशी ,हार जीत जीवन की खुद झेलते हो ,
मगर हमें  उसमें शरीक नहीं करते ।
सोचते होंगे ! ”पशु है क्या कर लेगा !”
अरे एक बार तो  सच्चे मन से गले लगाकर तो देखो ,
कसम से बड़ा सुकून पायोगे ।
मैं हूँ हाड़ मास का,चलता फिरता जीव,
मुझमें भी अपने जैसा धड़कता हुआ दिल पायोगे ।
फिर निराशा में अपने जीवन से पलायन की सोच भी न पायोगे।
और यदि ऐसा ख़्याल भी आया तो मेरा ख़्याल कर रुक जायोगे ।
मगर ऐसा हो सकता है तभी जब तुम हमें ,
अपने जीवन का सच्चा और स्थायी साथी बनाओगे ।
क्योंकि हम भी ईश्वर की कृति जीव हैं इस धरती पर ,
कोई मनोरंजन का साधन नहीं।

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