आए ही कब थे अपनी खुशी से हम ,
न ही जाना हो पाएगा अपनी खुशी से ।
क़ज़ा जो आ खड़ी हुई दर पर अपने ,
कैसे रुसवा कर सकते हैं हम भला उसे ?
जिंदगी भर की कमाई है जो हमने की ,
खुल रहे हैं नेकियों-बदियों के हिसाब से।
सामने है नज़रों के अब हमारे सारी जिंदगी ,
तस्वीर दर तस्वीर ज्यों किसी फिल्म जैसे ।
सँजोये जीतने मालो -दौलत ,एशो इशरत ,
रिश्ते -नाते सब अब लग रहे हैं बेगाने से ।
हमारी तो अब हस्ती ही बिखरे जा रही है 'अनु'
जिस्म खाक हो गया रूह के निकल जाने से ।
अरमानो -खवाइशों की औकात की क्या पुछें ,
मिट गयी सब जिंदगी का चिराग बुझने से ।
यह दुनिया है खूबसूरत धोखे से कमतर नहीं,
एहसास हुआ तब जब मिले नूर ऐ इलाही से ।
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