शुक्रवार, 9 अक्तूबर 2020

एक अंजाना सफर (गजल)

आए ही कब थे अपनी खुशी से हम ,

न ही जाना हो पाएगा अपनी खुशी से ।

क़ज़ा जो आ खड़ी हुई दर पर अपने ,

कैसे रुसवा कर सकते हैं हम भला उसे ?

जिंदगी भर की कमाई है जो हमने की ,

खुल रहे हैं नेकियों-बदियों के हिसाब से।

सामने है नज़रों के अब हमारे सारी जिंदगी ,

तस्वीर दर तस्वीर ज्यों किसी फिल्म जैसे ।

सँजोये जीतने मालो -दौलत ,एशो इशरत ,

रिश्ते -नाते सब अब लग रहे  हैं बेगाने से ।

हमारी तो अब हस्ती ही बिखरे जा रही है 'अनु'

जिस्म खाक हो गया रूह के निकल जाने से ।

अरमानो -खवाइशों की औकात की क्या पुछें ,

मिट गयी सब जिंदगी का चिराग बुझने से ।

यह दुनिया है खूबसूरत धोखे से कमतर नहीं,

एहसास हुआ तब जब मिले नूर ऐ इलाही से ।




 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें