सुनते आए हैं सदा से,
टूटते हैं सितारे फ़लक से ,
और फिर नए बन जाते हैं ।
गिरता है फूल शाख़ से ,
और फिर नया फूल खिल जाता है।
पेड़ों से पत्ते पुराने झरते हैं,
और फिर नये आ जाते हैं।
कितना सहज है यह प्रकृति का परिवर्तन !
मगर सभी के लिए आसान नहीं होता यह परिवर्तन ,
वास्तव में तो कुछ आसमान ऐसे होते हैं ,
जो सितारों के टूटने से रिक्त हो जाते हैं।
कुछ गुलशन ऐसे होते हैं जो एक भी फूल के मुरझाने से
मातम में डूब जाते हैं।
और कुछ पेड़ ऐसे भी होते हैं जो कभी भी अपने से जुदा
हुए पत्ते को भूल नहीं पाते हैं।
ये कुछ आकुल ,व्याकुल , शोक संतप्त ह्रदय हैं ,
जो अपने सितारों ,अपने फूलों और अपने पत्तों को
कभी भूल नहीं पाएंगे ।
आजीवन भूल नहीं पाएंगे ।
दुनिया के सामने वो सामान्य व्यवहार करेंगे ,
मगर एकांत मिलते ही गम में डूब जाएंगे ।
अपने बिछड़े हुए परिजनो की यादों में ,
गिरफ्तार होकर एक शून्य में खो जाएंगे ।
अंततः सभी मानव ह्रदय प्रकृति की तरह ,
परिवर्तन शील नहीं होते ।
प्रत्यक्ष में जो दिखते है जैसे ,
वास्तव में वो नहीं होते।
समय की धूल पड़ भी जाए दिल रूपी आईने पर ,
मगर उससे तस्वीर धुंधली हो बेशक हो जाए ,
मगर मिट नहीं सकती ।
अन्ततः कुछ विशेष लोगों की कमी भी ,
जीवन में कभी पूरी नहीं होती ।
एक शून्य छोड़ जाती है ।
और शून्य की भरपाई कभी नहीं होती।
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