भारतीय सिनेमा के 100 वर्ष के उपलक्ष पर
हे माया नगरी !
तेरा वर्चस्व है अपार ,तुमने बसाया है ,
जहाँ में सपनो का संसार .
कुछ सच तो कुछ कल्पना ,
श्वेत पट में की गयी हो ज्यों
रंगीन सुंदर अल्पना।
फेंके जब तू अपने सम्मोहन का जाल .
या फैलाये जगमगाती ,झिलमिलाती ,
जादू भरी रौशनी शमा सी तू ,
न जाने कहाँ कहाँ से उड़ -उड़ कर आये
तुझ पर मंडराने कोई दीवाना सा ,परवाना सा ,
कलाप्रेमी कलाकार .
होम कर जो जीवन ,मान सम्मान, और अपना वजूद ,
समझता है खुद को भाग्यवान .
तभी तो तेरी मुहोबत में छोड़ देता है , घर-परिवार , समाज व् खानदान .
तूने भी तब खूब अपनी वफ़ा निभाई ,
इस प्यार व् समर्पण के बदले तूने भी
उसे उसकी कामयाबी की मंजिल दिलवाई .
दुनिया व् देश भर की जनता के दिलों में ,
अमिट जगह बनवाई .
मगर तेरी खुबसूरत तस्वीर का यह एक पहलु है ,
दूसरा पहलु तेरा कुछ और है .
जो दीखता है परदे पर वही नहीं ,
तेरा वास्तविक रूप तो कुछ और भी ह मेरी नज़र में तू सिर्फ महबूबा ही नहीं ,
तू सिर्फ जलती हुई शमा ही नहीं ,
न ही है तू सिर्फ मदमाती ,खुबू भरी हवा ,
तू है मेरी नज़र में एक विशाल दरखत .
सुंदर ,फलदार और मजबूत .
जिसकी शाखों पर हर रोज़ नए -नए फुल और पत्ते खिलते है ,
जिसकी ताजगी व् खूबसूरती और खुशबू से महकता है
समस्त संसार .
जब तक है वोह तेरी शाखों से जुड़े हुए ,
तब तक है वोह पल्लवित और पुष्पित .
मगर जब चलेगा बदकिस्मती का तेज़ झोंका ,
शाख से अलग होकर उड़ जायेंगे यह जाने कहाँ .
धूल में मिल जायेंगे ,
क़दमों तले मसले जायेंगे ,
या गुमनामी की दमघोटू काल कोठरी में
घुट -घुट के मर जायेंगे .
मगर तुझे क्या ?
तू तो पेड़ है ,
तू भाग्यवान है ,
तू अह भी मजबूत है ,
अपने एक -एक फुल-पत्तों के नसीब का ठेका
तूने थोड़े ना लेकर रखा है .
किस को ज़मीं खा गयी ,
किसको आसमा निगल गया ,
और कोई तो न ज़मीं का रहा ना अस्मा का।
वोह क्षितिज पर अटक गया .
उम्मीदों की क्षितिज पर .
मगर क्षितिज पर अटका फुल किस काम का !
तेरे लिए डूबता हुआ सूरज किस काम का।
दुनिया चदते हुए सूरज को सलाम करती है ,
और तू भी बढती हुई धारायों का स्वागत करती है ,
क्योंकि जो रुक गया वोह समझो नाला बन गया ,
खड़ा हुआ नाला गन्दा हो जाता है .
और गन्दा नाला किसको पसंद होता है ?
इस समाज को भी तो बिलकुल पसंद नहीं .
तू भी तो है समाज का हिस्सा .
समाज है तेरा या तू समाज का आईना .
तू है सपनो की सौदागर ,
हे माय नगरी !
जैसी भी है मगर हमें है प्यारी .
तू है हमारे देश का अमूल्य नगीना।
कैसे भूल सकते है तेरा उपकार ,
तूने दिए अनगिनत ,अमूल्य ,व अमर हीरे -जवाहरात ,
रत्न नगीने .
तुझमें है एक कमी ,
तो क्या हुआ !
चाँद में भी तो दाग होता है ,
मगर फिर भी वोह सुहाना व् प्यारा लगता है .
इसी तरह तू भी हामी प्यारी है .
हे कला नगरी !
तुझे तेरा 100 वां जन्मदिवस ,
ढेर सारी शुभ कामनायों के साथ ,
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