हम हिन्दोस्तानीयों का दिल ( व्यंग्य कविता)
हम हिन्दोस्तानी बड़े भावुक होते हैं जी ! ,
हमारे भी सीने में है एक धड़कता हुआ दिल।
सुबह अखबार में जब मिलती है कोई हादसे कि खबर ,
तो एक '' आह '' से भर जाता है यह दिल।
सड़क पर पड़े घायल इंसा को कर देंगे नज़र-अंदाज़,
तो क्या हुआ ! ''बेचारा '' उसे कह तो देता है दिल।
किसी लड़की को कोई छेड़े तो कन्नी काट लेते हैं ,
मगर बलात्कार की वारदात से काँप जायेगा दिल।
क्रिकेट में जीत कर आयें खिलाड़ी तो सर आँखों पर ,
हार जाएँ तो उन्हें कोसने से बाज़ नहींआएगा यह दिल।
हम थोड़े मासूम भी है तभी तो बहक जाते ''उनके'' वायदों से ,
मगर जब खुलती है हमारी आँखें ,तो डर जाता है ''उनका दिल''।
हंगामें करना , पुतले फूंकना , धरने देना और आगजनी ,
कुछ तो करना है ना ! तो गरमा-गरम मुद्दे ढूढता है यह दिल।
हम इन्केलाब लाना तो चाहते है मगर क्या'' इस तरह''?
हम हिन्दोस्तानी बनते हैं बड़े दिलवाले , क्या है हमारे पास दिल ?
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