कहाँ है इन्साफ ? (कविता)
इन्साफ की देवी के तराज़ू में नहीं ,
न्यायधीश की फैंसले मे भी नहीं ,
वकीलों के बे बुनियाद सबूतों से फिर
कहाँ मिलेगा इन्साफ ?
पुलिस के डंडे में भी वह दम नहीं ,
यदि कुछ है भी तो सिर्फ कमज़ोरों के लिए।
मूंछों का ताव ,और आँखों में क्रोध ,
जो भी है बस पीड़ित व बेग़ुनाहों के लिए।
ऐसे में कहाँ मिलेगा इन्साफ ?
बदलें चाहे जितनी सरकारें ,
कोई भी आये , क्या कर लेगा?
नया कानून बनाएगा ,पुराने बदलेगा ,
मगर इनका सख्ती से पालन कौन करायेगा ?
जनता को अपने हक़ का ,
फिर कैसे मिलेगा इन्साफ ?
यदि कुछ है भी तो सिर्फ कमज़ोरों के लिए।
मूंछों का ताव ,और आँखों में क्रोध ,
जो भी है बस पीड़ित व बेग़ुनाहों के लिए।
ऐसे में कहाँ मिलेगा इन्साफ ?
बदलें चाहे जितनी सरकारें ,
कोई भी आये , क्या कर लेगा?
नया कानून बनाएगा ,पुराने बदलेगा ,
मगर इनका सख्ती से पालन कौन करायेगा ?
जनता को अपने हक़ का ,
फिर कैसे मिलेगा इन्साफ ?
न्यायधीश का जब न रहा ज़मीर ,
वकील भी बन गए पैसो के पीर
पुलिस की बिगड़ गयी है छवि ,
अपने ईमान से वह गए है गिर।
किस्से करेगा कोई शिकायत ,
और किससे मांगेगा इन्साफ ?
क़ानून की सब किताबें व् दस्तावेज ,
सजा रहे सिर्फ अमीरों व् रसूखदारों की सेज।
गरीबों ,मजबूर ,पीड़ित की बेगुनाही के सबूत ,
तो कायल है दीमक भरी अलमारी या धूलभरी मेज।
सारी उम्र गुज़र जाये बेशक ,
मगर कभी न मिलेगा इन्साफ।
चांदी व् सोने से ईमान को तोलने वाले ,
क्या जाने किसी की ज़िंदगी की कीमत।
खुद माँ -बहिन ,बेटी व् बहु वाले होकर ,
नहीं जानते किसी गरीब की इज़्ज़त।
अपराधियों के साथ जब करेंगे साठ -गांठ ,
तो कैसे मिलेगा इन्साफ ?
पशुओं से भी ज़यदा गिर चुके है ,
मनुष्यता ना रही मानव -समाज में।
शराफत और ईमान मर चूका है अब ,
इन्साफ की क्या उम्मीद करना इस समाज में ,
मर चूका है अब इन्साफ।
वकील भी बन गए पैसो के पीर
पुलिस की बिगड़ गयी है छवि ,
अपने ईमान से वह गए है गिर।
किस्से करेगा कोई शिकायत ,
और किससे मांगेगा इन्साफ ?
क़ानून की सब किताबें व् दस्तावेज ,
सजा रहे सिर्फ अमीरों व् रसूखदारों की सेज।
गरीबों ,मजबूर ,पीड़ित की बेगुनाही के सबूत ,
तो कायल है दीमक भरी अलमारी या धूलभरी मेज।
सारी उम्र गुज़र जाये बेशक ,
मगर कभी न मिलेगा इन्साफ।
चांदी व् सोने से ईमान को तोलने वाले ,
क्या जाने किसी की ज़िंदगी की कीमत।
खुद माँ -बहिन ,बेटी व् बहु वाले होकर ,
नहीं जानते किसी गरीब की इज़्ज़त।
अपराधियों के साथ जब करेंगे साठ -गांठ ,
तो कैसे मिलेगा इन्साफ ?
पशुओं से भी ज़यदा गिर चुके है ,
मनुष्यता ना रही मानव -समाज में।
शराफत और ईमान मर चूका है अब ,
इन्साफ की क्या उम्मीद करना इस समाज में ,
मर चूका है अब इन्साफ।
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