अपनी किताबों से मेरा नाम तो मिटा दिया,
मगर क्या ज़हन से भी मुझे मिटा दिया होगा
खुद को भुलाने की कोशिशों में उस दीवानी ने,
जाने किस तरह औ क्यों !मुझे भुला दिया होगा.
बादे-सबा अब भी आकर छेड़ती होगी उसकी ज़ुल्फ़,
बंद कर दरो-दिवार अपने उसे रुसवा किया होगा.
इबादत को उठते तो होंगे हाथ उसके मगर,
दुआयों में फिर भी मुझे ही खुदा से माँगा होगा.
मेरी राहें रोशन करने को उस शम्मा ने,
चिराग-ऐ-दिल जलाया तो जलाया होगा. या फिर मेरी यादों की शम्मा जलाकर ,
खुद को परवाने सा उसने जलाया होगा.
तन्हाई के आलम में जो अश्क लफ़्ज़ों में ढले,
वोह कोई ग़ज़ल या नगमा बन गया होगा.
वोह आएगा ज़रूर !रूह को दी तसल्ली इंतज़ार में मेरे उसने मौत को मनाया होगा.
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