मुद्दा ( कविता)
पीने वाले को तो पीने का बहाना चाहिए ,
नेताजी को भी पंगा करने को मुद्दा चाहिय।
मुद्दे कई उगेंगे और उगते रहेंगे कुकुरमुत्तों जैसे ,
नए बहानो के साथ उगते इन मुद्दों को ,
नेताजी ! आपका पोषण चाहिए।
पोषण जो आपका मिलेगा तो यह चिंगारी बनेंगे,
इस चिंगारी को भड़काने को बस एक पलीता चाहिए।
पलीता गर सुलगेगा तो क्या करेंगे आप !
किसी का घर जले तो जले ,आपको तो तमाशा चाहिए।
तमाशों से ही तो जी बहलता है आपका,
तमाशे पे तमाशा पैदा करने को फिर मुद्दा चाहिए।
इस राजनीति रूपी दुकान में सजे हैं रंग -बिरंगे मुद्दे,
विक्रेता भी खुद है और उपभोक्ता भी खुद,
और इन्हें और क्या चाहिए !
यह मुद्दे यह घोटाले और यह अयियाशी ,
यही है आपका जीवन , सही है!
इनके बिना आप कैसे जियेंगे?
अपना जीवन बचाने को ,
आपको असंख्य जीवन की आहुति चाहिये।
I like it
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