मेरी माँ !
मुझे मत मरो .
मन के यह जीवन तुम्हारा है ,
मेरी सांसो पर भी तुम्हारा हक है.
मगर मुझे जीना है माँ!
मुझे यह दुनिया देखनी है.
यह गुलिस्तान जैसी दुनिया के,
रंग-बिरंगे ,भिन्न भिन्न खुशबु वाले फूलों जैसे लोग
कैसे है ? यह मुझे देखना है.
यह प्रकृति और इसके विभिन्न अंग,
जड़-चेतन ,पेड़ पौधे, व् पशु -पक्षी .
मुझे इनका कलरव सुनना है.
नदियों के पानी को छुना है.
पर्वतों की ऊँचाई को पाना है,
मुझे इस धरती के प्रत्येक हिस्से में बसी
खुशबु, रंग व् ध्वनी का एहसास करना है.
मैं इन सब को जीना चाहती हूँ .
मैं इन सब के साथ जीना चाहती हूँ .
इन सबके गुणों को आत्मसात
करते हुए एक आदर्श जीवन का उदहारण
के जब तुम मुझे जीने दो.
माना की इस गुलशन में कई ज़हरीले
मैं हर चोट ,ज़ख्म व् दर्द बर्दाश्त कर लुंगी.
क्यों की मुझे मालूम है यही जीवन है.
मुझे अपनी पलकें खोलने दो.
मेरे जीवन के साथ-साथ मेरे सपने,
मेरी हसरतों ,चाहतों व् कोमल भावनायों
को भी एक अगड़ाई के साथ जागने दो.
बड़ी दूर की यात्रा करती तुम्हारे घर आई हूँ .
अगर तुमने मेरी रक्षा नहीं की ,
अगर तुमने मुझे अपनी कोख में ही मर दिया तो ..
तो माँ ! मैं वापिस उन्हीं गहरे व् लम्बे अंधेरों में खो जायुंगी .
मैं तुमसे दूर -बहुत दूर चली जायुंगी .
हमेशा -हमेशा के लिए ,
फिर वापिस कभी नहीं आयुंगी ,
कई सदियों तक नहीं आयुंगी .
क्या तुम यही चाहती हो ?
नहीं ना !
तो फिर मेरी रक्षा करो ,
मुझे मत मरने दो .
मैं वायदा करती हूँ तुमसे .
मैं तुम्हारा बोझ नहीं ,
मैं तुम्हारा सहारा बनूँगी .
तुम्हारे सुख-दुःख का भी अंश बनुगी .
मुझे महसूस करके
मेरा अस्तित्व को मिटा दोगी
मेरा अस्तित्व मत मिटायो ,
यह एक बेटी की याचना है ,
यह तुम्हारे अंश की प्राथना है.
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