ए मालिक !
ऐ मालिक !तेरे जहाँ में ऐसे लोग भी हैं,
नकाब दोस्ती का औ नज़र दुश्मन सी।
जुबान ऐसी की बरसे है आब-ऐ-हयात ,
चेहरे के पीछे चेहरा ,तस्वीर यह बईमान सी ,
काफ़िर तो नहीं ,करते है यह तेरी इबादत,
इनके उजले कपड़ों छुपी सितम की दास्ताँ सी।
इन्हें नहीं दिखा करती किसी की सिसकती रूह,
है इनकी आँखों में पट्टी गुमान सी।
औरों की ख़ुशी ,ख्वाब या हसरतें होती है कुछ ,
जी नहीं! उन पर हुकुमत है शैतान सी।
तड़प के पुकारती है तुझे यह अनु,
आके देख ज़रा ,है यह हस्ती टूटे हुए इंसा सी।
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