वाह चेहरा-ऐ-किताबी ! ( हास्य-व्यंग्य रचना )
वाह चेहरा -ऐ-किताबी ,तेरा जलवा बकरार है,
सारी दुनिया तेरे इश्क में इस कदर बीमार है.
बच्चे,बूढ़े ,जवान, औरत हो या मर्द सभी ही ,
कर बैठे हैं जो तुझसे निगाहों का चार है.
तेरे पहलु में जो भी आया वोह तेरे हो बैठा ,
फिर जहाँ से उसे क्या,उसका तो तू ही संसार है.
जिंदगी में कुछ रहे न रहे ,कोई गम नहीं,
मगर तेरा इकबाल सदा बक़रार रहे .
कहने को तो लाखों दोस्त हैं फ्रेंड लिस्ट में ,
मगर पड़ोसियों से रहती सदा तकरार है.
गुफ्तगू किये घरवालों से ज़माना गुज़र गया,
बस मेसेज और चैटिंग ही हर रिश्ते का आधार है.
तुममें और कुछ खामियां तो अच्छाई भी तो है,
जन्मदिन /सालगिरह /बरसीयां रहती सदा याद है .
अभिव्यक्ति की आज़ादी का तुम हो बेजोड़ ज़रिया ,
जो कुछ भी है दिल में बस उगलने को जुबां तैयार है.
तुम्हें तो दो धारी तलवार कहना भी गलत न होगा,
भाईचारे का सन्देश देने वाले ,तेरे हाथ में खंजर भी है.
तुममें है एक और अच्छी बात है हमने सदा माना ,
तुमने हमजैसों के छुपे हुए हुनर को उभारा /निखारा है.
शुक्रिया उस शख्स का ,जिसका नाम है मार्क जुकरबर्ग ,
जिसके इस खुबसूरत /मायावी जाल ने हमको फंसाया है.
वाह चेहरा -ऐ-किताबी ,तेरा जलवा बकरार है,
सारी दुनिया तेरे इश्क में इस कदर बीमार है.
बच्चे,बूढ़े ,जवान, औरत हो या मर्द सभी ही ,
कर बैठे हैं जो तुझसे निगाहों का चार है.
तेरे पहलु में जो भी आया वोह तेरे हो बैठा ,
फिर जहाँ से उसे क्या,उसका तो तू ही संसार है.
जिंदगी में कुछ रहे न रहे ,कोई गम नहीं,
मगर तेरा इकबाल सदा बक़रार रहे .
कहने को तो लाखों दोस्त हैं फ्रेंड लिस्ट में ,
मगर पड़ोसियों से रहती सदा तकरार है.
गुफ्तगू किये घरवालों से ज़माना गुज़र गया,
बस मेसेज और चैटिंग ही हर रिश्ते का आधार है.
तुममें और कुछ खामियां तो अच्छाई भी तो है,
जन्मदिन /सालगिरह /बरसीयां रहती सदा याद है .
अभिव्यक्ति की आज़ादी का तुम हो बेजोड़ ज़रिया ,
जो कुछ भी है दिल में बस उगलने को जुबां तैयार है.
तुम्हें तो दो धारी तलवार कहना भी गलत न होगा,
भाईचारे का सन्देश देने वाले ,तेरे हाथ में खंजर भी है.
तुममें है एक और अच्छी बात है हमने सदा माना ,
तुमने हमजैसों के छुपे हुए हुनर को उभारा /निखारा है.
शुक्रिया उस शख्स का ,जिसका नाम है मार्क जुकरबर्ग ,
जिसके इस खुबसूरत /मायावी जाल ने हमको फंसाया है.
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