आशिक मिजाज़ आलू महाराज ( हास्य-व्यंग्य रचना )
यह आलू महाराज हैं बड़े आशिक़ मिजाज़ ,
हर सब्जी पर डालते हैं ये डोरे .
इश्क फरमाते हैं गज़र,मटर ,बींस ,फूल गोभी से ,
नैन मटक्का बैंगन ,पत्ता-गोभी , सेम केसाथ .
बना लेते हैं यह सब के साथ अपनी जोड़ीयां ,
उनके लिए गायेंगे ''दिल भी तेरा ,हम भी तेरे .
इनकी फ़राख दिली के बारे में कहना ही क्या ,
करेली जैसी और कड़वी ,बोरिंग सब्जियों से भी निभा लेते हैं,
हरी पत्तेदार सब्जियों से भी इनकी थोड़ी-थोड़ी है यारी,
कहते हैं आशिकाना अंदाज में '' बिन फेरे हम तेरे '' .
यह तो वोह सब्जियां हैं जिनके बिना हैं यह अधूरे ,
और यह सब्जियां हैं इनके बिना अधूरी .
मगर कुछ ऐसी सब्जियां भी हैं जनाब !
जिनके सामने इनकी डाल नहीं गलती .
वोह हैं घिया ,पैठा ,टिंडा और तोरी .
यह दुत्कारती हैं इन्हें ''दूर हट छिछोरे! ''
महाराजा है आप तमाम सब्जियों के ,
मगर यह नामुराद सब्जियों करें तुम्हारी बेइज्जती.
कोई बात नहीं ,दिल छोटा मत करो आलू जी ,
इनके इस क्रोध में इनकी कुढ़न है बोलती .
दरअसल यह सब्जियां हैं आपकी खुश किस्मती से जलती.
क्योंकि आप रूपवान सब्जियों से सदा रहते हैं घीरे .
आप तो हैं जन-जन के ह्रदय सम्राट , सबके दुलारे ,
बच्चे की तो जान हैं आप और बड़े-बूढों के भी प्यारे .
कोई चंद नासमझ लोग ना महत्त्व दे आपको ,
इससे क्या फर्क पड़ता है ?
जो मिले प्यार से , सम्मान से , उसे अपना बनाते चलो ,
ज़माने का दस्तूर यही कहता है.
बाकि हम तो सदा कहते हैं और अब भी कहेंगे ,
आप सदा सलामत रहे , आपके बिना भोजन के
सारे स्वाद है अधूरे.
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