चुगली का बाज़ार गर्म है ... (हास्य-व्यंग्य कविता)
चुगली का बाज़ार गर्म है ,
समाज में लोगों के बीच ,
राजनीति में नेताओं के बीच ,
इसका बड़ा प्रचलन है.
है यह अनूठा कर्म ,
बड़ा ही रोचक
जगत-प्रसिद्ध और,
रोग है यह बेहतरीन .
रोग ही तो है यह,
सबके उदर में जन्मता है.
कर ना ले किसी की जब तक निंदा ,
दर्द बनकर उमड़ता रहता है.
और जब निकल जाये सारा गुबार ,
तो अहा ! आनंद ही आनंद !
गुफ्तगू तो बस बहाना है ,
मकसद तो बस भड़ास निकालना है .
सास -बहु के रिश्तों को ,
मालिक-नौकर के रिश्तोंको ,
दो मित्रों ,दो सखियों के संबंधों को ,
इसने खट्टा-मीठा और नमकीन बनाना है.
भला कोई पूछे चुगल खोरी में बुराई क्या है,!
यदि आप सुन ले किसी की चुगली ,
तो इससे बड़ी समाज सेवा क्या है. ?
सुकून और शांति महसूस करेगा कोई ,
आपको दुआएं ही देगा .
चलो ! दुयाएँ भी न दे , किसी और आगे ,
फिर आपकी भी चुगली करेगा ,
तो कोई बात नहीं ! भगवान् तो देख रहा है ना !
सो नेकी कर और डाल दरिया में ..
चुगलखोरी को हेय दृष्टि से ना देखिये ,
है यह अति -उत्तम व् मनोरंजक काम .
अन्यथा देवी-देवताओं को परस्पर लडवा कर भी ,
देवश्री नारद क्या पाते लोकप्रियता व् सम्मान .
है यह चुगल खोरी उन्ही का अनुसंधान .
शुक्र कीजिये सृष्टिकर्ता ब्रह्मा का ,
जिन्होंने जन्मा नारद रूपी नगीना .
वरना बिना चुगली इस निस्सार संसार में ,
जिंदगी जीने का मज़ा आता कभी ना !
बस अब अंत में हमारी प्रार्थना है आपसे ,
चुगलखोरी को चुगल खोरी ही रहने दीजिये .
फैलाकर ग़लतफहमी परस्पर
समाज के लोगों में ,
सभी इंसानी रिश्तों में ,
विघटन और वैमनस्य ना आने दीजिये.
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