आषाढ़ माह पर विशेष
अरे बरखा रानी ! अब तो आ जा (कविता)
अरे ! बरखा रानी !
अब तो आ भी जा।
व्याकुल हो रहे हैं हम ,
तेरे बिन ,अब तो दरस दिखा जा। ....
१, उमड़ -घुमड़ कर ,
गरज -बरस कर ,
जब बादल यह छाएंगे।
काले - कजरारे तेरे नैनो से ,
तेरा संदेशा लेकर आएंगे।
इसी आस पर ही हम तकते है आसमान को।
के कहीं से तो तू दिख जा।
अरे बरखा रानी। .......
२, प्यासी है धरती ,
प्यासा है अम्बर।
प्यासा है जड़-चेतन ,
प्यासे है जलचर -नभचर।
हम मनुष्य भी प्यास से त्रस्त हैं।
अपनी ठंडी -ठंडी फुहारों से सबकी प्यास बुझा जा।
अरे बरखा रानी। .......
३, तेरी बूंदों की टप- टप ,टिप-टिप को ,
सुनने को यह कान तरस गए।
तू तो ना बरसी अब तलक ,
मगर ये नयन हमारे बरस गए।
तेरे इंतज़ार मैं गुज़रते हैं दिन-रात ,
अब तो झलक दिखला जा।
अरे बरखा रानी ……
४, तुझे छूकर बहती है जब ,
यह ठंडी -ठंडी मस्त हवाएँ।
हाय ! कितनी सुहानी लगती हैं ,
यह महकी -महकी मदमस्त फ़िज़ाएं।
मन -मयूर नाच उठता है इनकी मस्ती में ,
आ! तू भी हमारे संग आकर झूम जा।
अरे बरखा रानी। ……
५, सुख चुके हैं सभी जलाशय ,
नदियां ,सरोवर व् कुंएं।
खेत -खलिहान सूखे ,
बाग़-बगीचे सूखे ,
फूलों -कलिओं के मुख भी हैं मुरझाये।
फिर भी तू क्यों देर लगाये।
इन्हें मन -भर पानी दे जा।
अरे बरखा रानी -…।
६, तेरी रेशम सी बूंदें ,
जब धरती पर पड़ती हैं।
सुन ऐ मानिनी !
एक सोंधी सी प्यारी सी महक ,
मिटटी से उठती है।
इस वसुंधरा पर हरियाली की
धानी चुनर ओढ़ा जा।
अरे बरखा रानी। …।
७, सुन ओ बरखा दीवानी ,
तू तो है प्रकृति की परम दुलारी।
मौसमो की तू सहचरी ,
सारा जगत है तेरा पुजारी।
ओ जीवनदायिनी !
इस सृष्टि को जीवन दे जा।
अरे बरखा रानी। …।
८, हाय ! यह सूरज कैसी आग बरसाए ,
हमसे अब यह गर्मी सही ना जाये।
उसपर ज़ालिम ! बिजली नखरे दिखाए।
यूँ लगे है अब बस यह जान निकली जाये।
तन-मन को प्रफुलित करने को ,
इस रूह को सुकून देने को।
अब तो बस आ ही जा।
अरे बरखा रानी। ……
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