सौगात ( ग़ज़ल)
फिर उस जिंदगी का मज़ा क्या है।
दर्द बनकर ना उमड़े जो आँखों से ,
उस ज़ज्बात की ज़रूरत क्या है।
सर्द आहों से खुश्क हो जाएँ लब ,
पीते है लहू का घूंट ,वाह क्या बात है।
तनहाईयों में ना जिसको करार हो ,
महफ़िल में बैठा वह शायर क्या है।
खुबसूरत है उसकी तरह उसका गम भी ,
तबस्सुम के साथ छलके यह जादू क्या है.
जाएँ जब जहाँ से कुछ तो पास हो ,
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