सदा ( ग़ज़ल)
लगता नहीं है दिल मेरा इस जहाँ में ,
आवाज़ दे कर पुकार ले अपने आशियाँ में।
दुनिया के दर्द-ओ-गम से जी गया है भर,
और बर्दाश्त करें ,इतना होंसला नहीं हम में।
किस मकसद से भेजा था इस आतिश खाने में,
क्यों भेजा था ?आग लगा आये अपने दामन में।
लाख कोशिश की रूह को आज़ाद करने की ,
उफ़ !कितनी घुटन है ,सीलन है इस मकान में।
रो -रो कर उम्र गुज़ार दी तेरे इंतज़ार में मैने ,
जिंदगी है अब भी बाकी , अश्क भी बाकी हैं ,
इन आँखों के पैमाने में।
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