वतन की आप-बीती (ग़ज़ल)
अब कहाँ वोह प्यार और वोह बातें प्यार की ,
अब तो मुझे सब खवाब सा लगता है।
गाये होंगे कभी किसी ने गीत प्यार के ,
अब तो यहाँ हर सु विरान बस्ता है।
थी कभी बहारें मेरी भी जिंदगी में ,
अब तो यहाँ बस खिजा का डेरा है.
मेरे आसमा ,हवाएं औ यह चाँद -सितारे ,
कल थे खुशनुमा ,आज इनमें दाग लगता है।
होता होगा मेरा रूतबा कभी इस जहाँ में बुलंद ,
अब उन्हीं की नज़र में मेरा किरदार बदनाम लगता है।
कभी पीता था मैं मुसर्रत से भरे जाम,
अब मुझे सरश्के -गम पीना पढता है.
रफ्ता -रफ्ता ज्यूँ है मेरा ज़ख्म बढ़ता जाता,
मेरा हर क़दम मौत की जानिब बढ़ता जाता है.
मेरी वोह आर्ज़ुओं ,तमन्नाओ ,खावायिशों के महल,
देखते ही देखते जो मकबरे में तब्दील होता जाता है.
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