ए वतन ! ( ग़ज़ल )
तेरे हाथों की लकीरों से बदनसीबी को मिटा देंगे ,
ए वतन ! यकीं कर तेरी तकदीर हम लिखेंगे।
लगा है जो दाग तेरी पेशानी पर बदनामी का ,
उस दाग को अपने खून से मिटा हम देंगे।
तेरी आँखों से निकले इन अश्कों की कसम ,
अब ना इन्हें बहने देंगे ,अपनी पलकों पर उठा लेंगे।
तेरा हुस्न, तेरी जवानी और तेरी शान-शौकत ,
लौटा न दे जब तक चैन से नहीं हम बैठेंगे।
हम रहे ना रहें ,तेरा नूर औ इकबाल बुलंद रहे ,
जहाँ में तेरा नाम रोशन हम कर जायेंगे।
तेरे होंठों की मासूम हंसी , तेरी ख़ुशी की खातिर ,
तेरे गम सारे अपने सर पर उठा हम लेंगे।
बेशक तुझे कर दिया बीमार कुछ कमज़र्फों ने ,
तेरे जिस्म पर लगे हर मर्ज़ को अब हम मिटा देंगे।
मुहोबत , वफादारी , और कौमी -एकता के फूलों से ,
हम तेरी औलादें ,तेरे दामन को सजा देंगे।
नोट - देश -प्रेम पर विशेष , भारत -माता को समर्पित।
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