बेटी ( कविता)
जिससे होता एक घर रौशन ,
दो कुल की रोशनी जिससे ,
बेटी है घर की रौनक .
सुन लो ऐ दुनिया वालो ...
बेटी बोझ नहीं होती ,
समझे जो लोग बेटा-बेटी को सामान ,
उनकी निम्न सोच नहीं होती .
बेटा है लाठी बुढ़ापे की , बस कहने को ,
बेटी है वास्तव में सहारा माता-पिता का .
बेटा गर है अभिमान ,
बेटी गुरुर है माता- पिता का .
बेटी होती है पराया धन ,
मगर ''अपने '' बेटे से कहीं अधिक
अपना होता है वोह पराया धन .
पास रहकर भी जो बेटा ,
माता- पिता के कष्टों से रहे अनजान .
मगर सौ कौस की दूरी से भी माता- पिता
व् बेटी के जुड़े रहे एक तार से मन .
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