सड़क -हादसों पर विशेष एक कविता
फटकार
उनकी सिसकियों की आहट ,
तुम्हें क्या सुनाई दी होगी ?
कुचल कर चल दिए तुम जिसे
अपनी शानदार मोटर तले ,
उनकी दर्द भरी चीखें भी ,
सुनाई न दी होंगी।
अमीरी के नशे में डूबे ,
अरे बड़े बाप की औलादो !
दौलत से खरीदना चाहते हो ,
तुम किसी बेबस की जुबां ,
बहुत बड़े व्यवसायी हो !
लौटा सकते हो उनका अपना ,
तो लौटा दो।
मोटर तले तुमने जिसे ,
बेदर्दी से कुचला।
वह भी तुम्हारी थे इंसान।
घर से निकले थे पूरा करने अपने सपने ,
थे उनके भी कुछ अरमान।
क्षण भर में तड़प-तड़प के ,
उसका प्राण निकला।
हाय ! तुमने एक बार भी ना सोचा ,
की तुम्हारी दीवानगी में बर्बाद हो गया ,
किसी का आशियाना।
किसी की लाठी ,
किसी का आसरा ,
किसी क सुहाग ,
और किसी का आश्रय था ,
वह अंजाना।
करता होगा कोई घर पर ,
उसका इंतेज़ार।
हाय ! तुमने ना जाना।
अपने से उठकर कभी किसी
और के बारे मैं भी सोच लिया करो।
सड़क पर बेतहाशा मोटर दौड़ाना वालो ,
कभी पैदल यात्रिओं का भी ख्याल
कर लिया करो।
आखिर यह सड़क है सबकी ,
किसी के बाप की जागीर नहीं.
सड़क -कानून बना है जन-जन के हित
केलिए।
इसको तोड़ना तुम्हारा अधिकार नहीं.
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