भावना की पीड़ा ( कविता)
ह्रदय में रहती थी वोह ,
कभी प्रेम व् त्याग बनकर .
ईश्वर द्वारा इंसान को ,
दी गयी जो अमूल्य धरोहर .
परन्तु आधुनिकता में हुआ ,
बुद्धि का ऐसा योग .
बुद्धि का ही करने लोग ,
जग में सब उपयोग .
भावनायों की भाषा और ,
भावनायों के सभी रूप .
पूंजीवादीता ने कर दिया इसे कुरूप .
अब पूछो इन मशीनों ( इंसानों ) से
तुम्हारी पहचान क्या है ?
प्रेम, करुणा ,दया के प्रति ,
जिनके ह्रदय में नहीं स्थान है .
वोह मानव मानव नहीं ,
उसका जीवन मरघट के सामान है .
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