भावना की पीड़ा
ह्रदय में रहती थी ,
कभी प्रेम और त्याग बनकर।ईश्वर की इंसान के प्रति ,
अमूल्य धरोहर बनकर।
परन्तु आधुनिकता का हुआ ,
बुध्दि से ऐसा संयोग ,
बुद्धि का ही करने लगे ,
जग में सब उपयोग .
भावना की भाषा ,और ,
भावना के सब रूप .
पूंजी वादिता ने तो ,
करदिया इसे कुरूप .
अब पूछो हर प्राणी से ,
की क्या है उसकी पहचान ,
भावना विहीन ह्रदय तो ,
शिला सामान .
और ऐसा जीवन ,जिसमें नहीं .
प्रेम का मीठा संगीत ,
वोह जीवन है शमशान .
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