शनिवार, 23 दिसंबर 2017

(अमर गायक स्व. मुहम्मद रफ़ी साहब के जन्मदिवस पर विशेष) इंसान या फ़रिश्ता

   
 (अमर गायक स्व. मुहम्मद रफ़ी साहब की पुण्यतिथि पर विशेष)
                इंसान या फ़रिश्ता 
      

 इंसान था वोह या फ़रिश्ता था कोई  
 देखते ही सजदे में यूँ सर झुक जाये .

 आवाज़ थी जिसकी शहद सी मीठी  
 जज़्बात के हर रंग में ढल जाये.

 सादगी,पाकीजगी,इंसानियत की मूरत  
 क्यों उसे फिर फ़रिश्ता कहा जाये .

 यारों का तो यार था,दुश्मनों का भी या,र
 उसकी मीठी मुस्कान गैरों पर भी जादू कर जाये .

 दौलत,शोहरत का गुलाम नहीं था वोह  
 दौलत शोहरत खुद जिसकी बांदी बन जाये .
  
 पीर-पैगंबर जैसा जीने का अंदाज़ था जिसका  
 बस प्यार ही प्यार अपनी अदा से लुटाता जाए .

  वतन-परस्ती और सभी मजहबों की इज़्ज़त 
 सभी इंसानों में जिसे बस  खुदा नज़र आये .

 संगीत का पैगम्बर कहे या कहे तानसेन/बेजुबावरा  
 उसकी तारीफ में वल्लाह ! हर लफ्ज़ कम पड़ जाये.

  चाहे कितनी सदियाँ गुज़र जाएँ मगर इस जहाँ में ,
  रफ़ी जैसे फनकार/फ़रिश्ते को शायद ही कोई भूल पाए.

 जब भी सुनाई दे हमारे कानों में उसकी मीठी आवाज़  
 सांसों की ताल पर यह धड्कान सदा उसे के गीत गए.

 ‘’ इक बंजारा गाये ,जीवन के गीत सुनाये  
   हम सब जीने वालों को जीने की राह बताये ‘’



 

     

      


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