कैसे -कैसे रिश्ते (कविता )
कैसे -कैसे ये दुनिया में रिश्ते ,
कैसा इन रिश्तों का ताना-बाना .
किसी में निश्छल ,निस्वार्थ प्रेम
किसी में बस मतलब का याराना .
कहीं अजनबी भी अपने से ,
तो कहीं अपने भी अजनबी .
मरहम लगाये इन्हीं में कोई,
और इन्हीं में ज़ख्म दे जाये कभी .
जीवन के सफ़र में जुड़ते है रिश्तेऐसे ,
रेल की लम्बी यात्रा की तरह .
मिलना -बिछुड़ना जैसे लगा रहता है ,
जीवन में भी हमारे इसी तरह .
इस सफ़र में मिलते है भिन्न -भिन्न ,
प्रकृति के कितनी संख्या में यात्री ,
कोई दिलदार ,तो कोई खुश्क ,
कोई साथ छोड़ने वाला .तो कोई बनता सहयात्री .
साथ सफ़र करते हैं, वोह सहयात्री ,
तो क्या एक-दूजे को पहचानते है ?
क्षणिक भेंट क्या ता उम्र भी वोह ,
एक-दूजे को क्या जान पाते हैं?
अपने होकर भी जो गैर रह जाते हैं,
नहीं पढ़ पाते मन की अनकही भाषा .
और कोई गैर होकर भी पढ़ जाते है ,
हमारे जीवन की पूर्ण परिभाषा .
यह है रिश्तों का ताना -बाना मित्रों !,
कुछ धर्म से तो कुछ जन्म से जुड़ा.
कुछ कर्म से तो कुछ व्यवहार से ,
तो कोई मात्र समझौते से जुड़ा .
भले कैसे भी हो दुनिया के रिश्ते ,
मगर इनमें भावना ज़रूरी है ,
चाहे कितने भी मतभेद हो परस्पर ,
मगर आपसी लगाव बहुत ज़रूरी है.
प्यार ,आत्मीयता जैसी ईश्वर के साथ,
काश इंसानों में भी वैसे ही हो जाये .
प्रकृति के साथ तारतम्य सब जीवों का जैसे ,
परस्पर एक दूजे के साथ हो जाये .
क्या ही अच्छा हो यदि खोखले रिश्तों का ताना -बाना ,
प्यार,करुणा ,साहचर्य ,दया ,और ममता से भर जाये.
हर रिश्ता हम इंसानों के मध्य का मजबूत हो जाये.
काश ! निस्वार्थ-स्नेह-सूत्र से बंधा होता रिश्तों का ताना -बाना .
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